Reservation Day : आरक्षण दिवस का संकल्प                       

Reservation Day : ऐसे शक्तिहीन समाज को सदियों बाद किसी व्यक्ति ने पहली बार शक्ति के स्रोतों में हिस्सेदारी दिलाने का सफल उपक्रम चलाया तो वह 26 जून, 1874 को कोल्हापुर राजमहल में जन्मे कोल्हापुर नरेश छत्रपति शाहू जी महाराज रहे।

लेखक: एच एल दुसाध

(बहुजन डायवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं )

न्यूज इंप्रेशन

Delhi: भारतवर्ष आरक्षण का देश है. कारण, हिन्दू धर्माधारित जिस वर्ण-व्यवस्था के द्वारा यह देश सदियों से परिचालित होता रहा है, वह वर्ण-व्यवस्था मुख्यतः शक्ति के स्रोतों-आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और धार्मिक-के बंटवारे की व्यवस्था रही है. वितरणवादी वर्ण-व्यवस्था के प्रवर्तकों द्वारा ऐसा प्रावधान रचा गया कि  शक्ति के स्रोतों में मूलनिवासी समाज (शुद्रातिशूद्रों) को रत्ती भर भी हिस्सेदारी नहीं मिली और यह समाज चिरकाल के लिए पूर्णरूपेण शक्तिहीन होने के लिए अभिशप्त हुआ. ऐसे शक्तिहीन समाज को सदियों बाद किसी व्यक्ति ने पहली बार शक्ति के स्रोतों में हिस्सेदारी दिलाने का सफल उपक्रम चलाया तो वह 26 जून, 1874 को कोल्हापुर राजमहल में जन्मे कोल्हापुर नरेश छत्रपति शाहू जी महाराज रहे। हम जानते हैं भारत सिर्फ आरक्षण का ही देश नहीं है,बल्कि दुनिया के अन्य देशों के विपरीत यहाँ के वर्ग संघर्ष का इतिहास भी आरक्षण पर केन्द्रित संघर्ष का इतिहास रहा है.खास तौर से दलित – पिछड़ों को मिलनेवाले आरक्षण पर देश में कैसे गृह-युद्ध की स्थिति पैदा हो जाती है,यह हमने मंडल के दिनों में देखा। तब मंडल रिपोर्ट के खिलाफ देश के शक्तिसंपन्न तबके के युवाओं ने जहां खुद को आत्म-दाह और राष्ट्र की संपदा-दाह में झोंक दिया,वहीँ सवर्णवादी संघ परिवार ने राम जन्मभूमि –मुक्ति आन्दोलन के नाम पर स्वाधीन भारत का सबसे बड़ा आन्दोलन खड़ा कर दिया,जिसके फलस्वरूप राष्ट्र की बेशुमार संपदा तथा असंख्य लोगों की प्राण हानि हुई। बाद में मंडल-2 के दिनों (2006 में जब पिछड़ों के लिए उच्च शिक्षण संस्थाओं के प्रवेश में आरक्षण लागू हुआ) में पुनः गृह-युद्ध की स्थिति पैदा कर दी गई।तब हाथों में सरफरोसी की तम्मना लिखी तख्तियां लिए सवर्ण छात्र- छात्राएं सडकों पर उतर आए थे. 21वीं सदी में जहाँ सारी दुनिया जिओ और जीने दो की राह पर चल रही है,वहीँ भारत के परम्परागत सुविधासंपन्न लोग आरक्षण के नाम पर बार-बार गृह – युद्ध की स्थिति पैदा करते रहे हैं। ऐसे हालात में 1902 के उस स्थिति की सहज कल्पना की जा सकती जब शाहू जी महाराज ने चित्तपावन ब्राह्मणों के प्रबल विरोध के मध्य 26 जुलाई को अपने राज्य कोल्हापुर की शिक्षा तथा सरकारी नौकरियों में दलित-पिछड़ों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया था । यह आधुनिक भारत में जाति के आधार मिला पहला आरक्षण था। इस कारण शाहू जी आधुनिक आरक्षण के जनक कहलाये और 26 जुलाई आरक्षण दिवस के रूप में चिन्हित हुआ।

आज वह आरक्षण कागजों की शोभा

आरक्षण दिवस के दिन आरक्षित वर्गों के लोग शाहू जी को कृतज्ञता पूर्वक स्मरण करने के साथ ही आरक्षण बचाने व बढाने की लड़ाई का संकल्प लेते है. लेकिन जिस आरक्षण की शुरुआत शाहू जी महाराज ने की और जिसे बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर के ऐतिहासिक प्रयासों से विस्तार मिला, आज वह आरक्षण कागजों की शोभा बनकर लगभग खात्मे के कगार पर पहुँच गया है. इस आशय की घोषणा 5 अगस्त,2018 को खुद मोदी सरकार के वरिष्ठ मंत्री नितिन गडकरी ने कर दिया था । उन्होंने उस दिन कहा था ,’सरकारी नौकरियां  ख़त्म हो चुकी है लिहाजा आरक्षण का कोई अर्थ नहीं रह गया है।‘ चूँकि आरक्षण लगभग खात्मे के कगार पर है इसलिए जाहिर है आज के दिन असंख्य बहुजनवादी संगठन और बुद्धिजीवी आरक्षण बचाने का नए सिरे से संकल्प लेंगे. लेकिन संकल्प लेने के पूर्व इससे जुड़ी कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ेगा.सबसे पहले तो यह ध्यान में रखना होगा कि पिछली सदी के शेष दशकों से जब संविधान प्रदत अवसरों का सद्व्यवहार  कर शूद्रातिशूद्रों में से ढेरों लोग सांसद, विधायक,सीएम- डीएम, डॉक्टर – इंजीनियर- प्रोफेसर, लेखक –पत्रकार इत्यादि बनने लगे, तब शासन-प्रशासन, न्यायपालिका, मीडिया, शैक्षणिक जगत में छाए उच्च वर्ण हिंदुओं ने इन्हें अपना वर्ग-शत्रु समझते हुए आरक्षण के खात्मे में सर्व-शक्ति लगाना शुरू कर दिया । इसके पीछे प्रमुख कारण यह रहा कि हजारों सालों से हिन्दू धर्मशास्त्रों द्वारा शक्ति के स्रोतों के भोग का अधिकार सिर्फ उच्च वर्ण हिंदुओं के लिए निर्दिष्ट रहे, इसलिए वे सदियों से खुद को शक्ति के स्रोतों के भोग का दैवीय – अधिकारी वर्ग मानने की मानसिकता से पुष्ट रहे.ऐसे में जब संविधान प्रदत अवसरों का लाभ उठा कर दलित, आदिवासी, पिछड़े आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक, धार्मिक इत्यादि गतिविधियों में हिस्सेदार बनने लगे, दैवीय – अधिकारी वर्ग (सवर्ण) आरक्षण के खात्मे में मुस्तैद हुए। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें लगता रहा कि आरक्षण के कारण हिन्दू – धर्म भ्रष्ट हो रहा है। कारण, इससे शुद्रातिशुद्रों को उन पेशे/ कर्मों के अपनाने का अवसर मिल जाता है , जो हिन्दू धर्मशास्त्रों द्वारा सिर्फ सवर्णों के लिए निर्दिष्ट रहे!

 

शूद्रातिशूद्रों के आरक्षण के प्रति  घृणा का यह भाव एक खास कारण से आम हिंदुओं के बजाय संघी हिंदुओं में कुछ ज्यादे ही पनपा।और वह कारण यह रहा कि चूंकि संघ ने विगत वर्षों में बड़ी चालांकि से खुद की छवि हिन्दू धर्म- संस्कृति के ठेकेदार के रूप स्थापित कर लिया था, इसलिए हिन्दू धर्म को भ्रष्ट करने वाले आरक्षण के प्रति नरम हिंदुओं से कहीं ज्यादा घृणा-भाव संघी हिन्दुओं में पनपा।संघ परिवार की आरक्षण के प्रति घृणा का चरम प्रतिबिम्बन मोदी की नीतियों के रूप मे सामने आया,जिन्होंने अपने पितृ संगठन संघ के हिन्दू राष्ट्र के सपने को मूर्त रूप देने के लिए विगत दस सालों से अपनी सारी नीतियां हिन्दू धर्म को म्लान करने वाले वर्ग शत्रुओं(शुद्रातिशूद्रों) को फिनिश करने पर केन्द्रित रखा। वह पीएम बनने के बाद संघ के सबसे बड़े सपने से एक पल के लिए भी अपना ध्यान नहीं हटाये। मछली की आँख पर सटीक निशाना साधने वाले अर्जुन की भांति ही 2014 में केन्द्रीय सत्ता पर काबिज हुए प्रधानमंत्री मोदी का सारा  ध्यान-ज्ञान हिन्दू राष्ट्र रहा ।हिन्दू राष्ट्र मतलब एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें संविधान नहीं, उन हिन्दू धार्मिक कानूनों द्वारा देश चलेगा, जिसमें शुद्रात्तिशूद्र स्व- धर्म पालन के नाम पर अधिकारविहीन नर-पशु बनने के लिए अभिशप्त रहे एवं शक्ति के समस्त स्रोत सिर्फ सवर्णों के लिए आरक्षित रहे।सत्ता में आने के बाद मोदी संघ के जिस हिन्दू राष्ट्र के सपने को आकार देने के लिए सतत प्रयत्नशील रहे , उसके मार्ग में सबसे बड़ी बाधा रहा है डॉ. आंबेडकर प्रवर्तित संविधान, जिसके खत्म होने की संभावना दूर-दूर तक नहीं दिखती। भारतीय संविधान हिन्दू राष्ट्र निर्माण की राह में इसलिए बाधा रहा , क्योंकि यह दलित – आदिवासी – पिछड़ों को उन सभी पेशे/कर्मों में प्रतिभा प्रदर्शन का अवसर प्रदान करता है, जो पेशे/ कर्म धर्मशास्त्रों द्वारा सिर्फ हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग(मुख-बाहु-जंघा) से उत्पन्न लोगों(ब्राह्मण-क्षत्रिय- वैश्यों) के लिए ही आरक्षित रहे। संविधान प्रदत यह अधिकार ही हिन्दू धर्म की स्थिति हास्यास्पद बना देता है क्योंकि संविधान के रहते दैवीय – अधिकारी वर्ग शक्ति के स्रोतों के एकाधिकार का भोग नहीं कर सकते!

संविधान के रहते हुये भी इन सभी क्षेत्रों पर दैवीय – अधिकारी वर्ग का एकाधिकार कायम हो सकता है यदि उपरोक्त क्षेत्रों को निजी क्षेत्र में शिफ्ट करा दिये जाए। इस बात को ध्यान में रखते हुये ही मोदी पिछले एक दशक से श्रम क़ानूनों को निरंतर कमजोर करने, लाभजनक सरकारी उपक्रमों तक को औने –पौने दामों में बेचने , हास्पिटलों, रेलवे, हवाई अड्डों को निजी हाथों में देने में युद्ध स्तर पर मुस्तैद रहे। इसीलिए ही उन्होंने आउट सोर्सिंग जॉब का सैलाब लाया ; इसीलिए ही उन्होंने लैटरल इंट्री और ईडब्लूएस आरक्षण की शुरुआत किया। इसीलिए ही मोदी राज में स्कूलों के विलय के जरिये प्राथमिक विद्यालयों को बंद करने का काम युद्ध स्तर पर चल रहा है।एक सरकारी डेटा के मुताबिक़ मोदी के सत्ता में आने के बाद से अबतक 89, 441 सरकारी स्कूल बंद किये जा चुके हैं। इसी मकसद से तेजी से प्राइवेट सेक्टर का विस्तार हो रहा है,क्योंकि वहां आरक्षण का अवसर ही नहीं है। शुद्रातिशुद्र सरकारी नौकरियां न पा सकें इसके लिए भर्तियों पर रोक लगी हुई है। 26 जुलाई , 2023 को केन्द्रीय कार्मिक मंत्री जितेन्द्र सिंह ने लोकसभा को सूचित किया था कि 1 मार्च, 2022 तक अलग-अलग सरकारी विभाग में कुल 9,64,359 पद खाली है.इनमे सबसे ज्यादा पद रेलवे(लगभग 2.63 लाख) खाली हैं. सरकार ने राज्य सभा को सूचित किया था कि गृह मंत्रालय के तहत विभिन्न संगठनों में 1, 14, 245 पद खाली हैं ,जिनमे सीआरपीएफ,बीएसएफ और दिल्ली पुलिस शामिल हैं.इन पक्तियों के लिखे जाने के कुछ दिन पूर्व राज्यसभा में सांसद मनोज झा के एक प्रश्न के जवाब में केन्द्रीय शिक्षा मंत्री सुकांत मजुमदार ने बताया है कि केन्द्रीय विश्व विद्यालयों में 80 प्रतिशत ओबीसी , 83 प्रतिशत एसटी और 64 प्रतिशत एससी प्रोफेसरों के पद खाली हैं. ये आंकड़े 30 जून ,2025 तक के हैं.प्रोफेसरों के इन पदों में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, एसोसिएट प्रोफ़ेसर और प्रोफ़ेसर : तीनों के पद खाली है.ओबीसी के स्वीकृत 423 प्रोफेसरों के पदों में सिर्फ 83 भरे गए हैं, 340 खाली हैं; एससी के 308 स्वीकृत पदों में सिर्फ 111 भरे गए हैं , 120 पद खाली हैंऔर एसटी के 144 स्वीकृत पदों में सिर्फ 24 भरे गए हैं, 120 पद खाली हैं । इस तरह देखे तो ओबीसी, एसटी और एससी के कुल स्वीकृत पदों में सिर्फ 218 भरे गए हैं और , 657 पद खाली हैं. जानकारों के मुताबिक़ केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों के खाली 657 पद महज 657 नौकरियां नहीं हैं , भारत के शीर्ष विश्वविद्यालयों, शीर्ष शैक्षिक पदों और बौद्धिक गातिविधियों के केन्द्रों से दलित, आदिवासी और पिछड़ों को बहिष्कृत करने का एक तरीका है. हिंदुत्ववादी मोदी सरकार द्वारा दलित, आदिवासी और पिछड़ों को बहिष्कृत करने का यह तरीका सिर्फ उच्च शिक्षण संस्थानों में नहीं, सभी क्षेत्रों में जोर-शोर से अपनाया जा रहा है.

काबिलेगौर है कि आरक्षण कोई दया- खैरात नहीं है, जैसा कि हिन्दू प्रचार माध्यम बताते रहते हैं. आरक्षण शक्ति के स्रोतों(आर्थिक-राजनीतिक-शैक्षिक- धार्मिक) से जबरन बहिष्कृत किये गए समुदायों को शक्ति के स्रोतों में उनका प्राप्य(हक़) दिलाकर राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल करने का जरिया है. इसी मकसद से अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, न्यूलीलैंड , ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण इत्यादि विश्व के तमाम देशों ने अपने- अपने देश के वंचितों को शक्ति के स्रोतों में आरक्षण सुलभ कराया. भारत में दलित ,आदिवासी , पिछड़े और महिलाएं सदियों से हिन्दू धर्म का प्राणाधार वर्ण- व्यवस्था के प्रावधानों द्वारा शक्ति के स्रोतों से बहिष्कृत रहे । वर्ण- व्यवस्था के प्रावधानों द्वारा इन्हें हजारों साल से पढ़ने- लिखने, भूस्वामित्व, सैन्य-वृति, व्यवसाय- वाणिज्य के अधिकार से बहिष्कृत रखा गया ।राजनीतिक और मोक्ष के लिए धार्मिक गतिविधियों से भी ये बहिष्कृत रहे। शक्ति के स्रोतों से इनका बहिष्कार दूर कर राष्ट्र की मुख्यधारा में जोड़ने के मकसद से ही 1902 में आज ही के दिन शाहूजी महाराज ने आरक्षण का प्रावधान किया था . बाद में इसी आरक्षण का विस्तार डॉ. आंबेडकर के सौजन्य से हुआ जो दलित – आदिवासियों से आगे बढ़कर पिछड़ों तक प्रसारित हो गया .आरक्षण से दलित, आदिवासी और पिछड़ों का मानव संसाधन राष्ट्र- हित में प्रयुक्त होना शुरू किया । इससे देखते ही देखते भारत आर्थिक, सामरिक, शैक्षिक , वैज्ञानिक दृष्टि से एक समर्थ राष्ट्र में उभरने लगा । पर, चूँकि आरक्षण से बहुजन उन पेशों को अपनाने लगे, जिनका ईश्वरीय – अधिकार सिर्फ सवर्णों को था, इसलिए चैम्पियन सवर्णवादी संघ और उसका राजनीतिक संगठन भाजपा ने आरक्षण के खात्मे में सर्वशक्ति लगाया और उसे कागजों की शोभा बनाने में काफी हद तक सफल हो गए। जिस गति से आरक्षण को व्यर्थ करने का अभियान चल रहा है, यदि भाजपा अगले और दस सालों तक सत्ता में रह गई तो उसका सफाया होना तय है।क्योंकि आरक्षण का खात्मा किये वगैर उसकी हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना मुकम्मल नहीं हो सकती : आरक्षण के खात्मे के जरिये ही वह दलित ,आदिवासी, पिछड़ों और महिलाओं को उस स्थिति में पहुंचा सकती है , जिस स्थिति में उन्हें बने रहने का निर्देश हिन्दू धर्मशास्त्र देते है.ऐसे में यदि दलित, आदिवासी और पिछड़े अपने अधिकारविहीन पुरुखों की स्थिति में आने से बचना चाहते हैं तो उन्हें भविष्य में भाजपा को सत्ता में आने से रोकने में हर मुमकिन प्रयास करना होगा । अतः आज आरक्षण दिवस पर भाजपा को सत्ता में आने से रोकना , आरक्षिक वर्गों का सबसे बड़ा संकल्प होना चाहिए।

बहरहाल भाजपा को सत्ता में आने से रोकने की रणनीति बनांते समय यह ध्यान में रखना सबसे जरुरी है कि वह आज अप्रतिरोध्य हो चुकी है और इसके पास जितने विशाल शक्ति के स्रोत हैं, वैसा सौभाग्य विश्व में किसी भी दल के साथ नहीं हैं। संघ के असंख्य छोटे – बड़े संगठनों के साथ भाजपा की शक्ति के अन्य स्रोत हैं- देश के 90 प्रतिशत से ज्यादा साधु- संत , लेखक-पत्रकार और धन्नासेठ! इसकी शक्ति का एक अन्य स्रोत है अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के प्रति नफरत का प्रसार! जिस तरह अंग्रेज मुट्ठी भर होकर भी आर्थिक , बौद्धिक और आधुनिक सामरिक शक्ति के जोर से विशाल भारत पर सुदीर्घ काल तक राज करते रहे, उसी तरह भाजपा अल्पजन दैवीय- अधिकारी वर्ग की संख्या बल पर निर्भर रहने के बावजूद अपने विशाल शक्ति के स्रोतों के जोर से हिन्दू धर्म के 90 प्रतिशत वंचितों पर शासन कर रही है। लेकिन शक्ति के अनंत स्रोतों से पुष्ट होकर भी भाजपा हमेशा हार वरण करने के लिए अभिशप्त रहती है, जब चुनाव सामाजिक न्याय पर केन्द्रित हो जाता है। चूंकि भाजपा लाख कोशिशें करके भी सामाजिक न्याय के सामने घुटने टेकने के लिए बराबर अभिशप्त रही है, इसलिए आरक्षित वर्गों के जो लोग भाजपा को सत्ता से बेदखल करना चाहते हैं, उन्हें अपनी जातिगत दुर्बलता को अतिक्रम करते हुए ऐसे दल के साथ मिलकर भाजपा हटाओ का अभियान चलाना होगा , जो दल सामाजिक न्याय के बेहतर एजेंडे लैस है और ऐसे दल के रूप में आज कांग्रेस का कोई जवाब ही नहीं है ! यह कांग्रेस है जो हाल के वर्षों में सामाजिक न्याय के जोर से भाजपा को कर्णाटक और तेलंगाना में शिकस्त दे चुकी है.यह कांग्रेस के राहुल गाँधी हैं, जिन्होंने 2024 में सामाजिक न्याय के एजेंडे के जोर से मोदी को 400 पार जाने से रोक दिया। यदि चुनाव आयोग सहित मोदी का तंत्र प्रभावी नहीं हुआ होता तो आज सामाजिक न्याय के जोर से इंडिया गठबंधन केंद्र की सत्ता पर काबिज होता!

वास्तव में यदि दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के लोग मन- प्राण से विश्वास करते हैं कि सामाजिक न्याय के जोर से ही आरक्षण का यम भाजपा को सत्ता में आने से रोका जा सकता है तो उन्हें कांग्रेस के साथ चलने का संकल्प लेना चाहिए.कारण, जिस सामाजिक न्याय के जोर से भाजपा जैसी चैम्पियन सांप्रदायिक पार्टी भाजपा को शिकस्त दिया जा सकता है, उस सामाजिक न्याय का एजेंडा देने में कांग्रेस ने बाकी सामाजिक न्यायवादी दलों को मीलों पीछे छोड़ दिया है. 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से पांच न्याय और 25 गारंटी से युक्त जो न्याय पत्र जारी हुआ था, उसे ढेरों लोगों ने सामाजिक न्याय का परमाणु बम करार दिया था. उसमे आरक्षण का 50 प्रतिशत दायरा तोड़ने ; महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण देने , अमेरिका की भांति भारत डाइवर्सिटी कमीशन गठित करने, राष्ट्रव्यापी आर्थिक- सामाजिक जनगणना कराने एससी- एसटी- ओबीसी के रिक्त पदों को साल भर में भरने सरकारी और सार्वजनिक उपक्रमों में संविदा की जगह स्थाई नौकरी देने, एससी- एसटी वर्ग के ठेकेदारों को बढ़ावा देने के लिए सार्वजानिक खरीद का दायरा बढ़ाने सामाजिक न्याय का संदेश फ़ैलाने के लिए बहुजन समाज सुधारकों की जीवनी और उनके कार्यों को विद्यालयों के पाठ्यक्रमों शामिल करने जैसी बातें थी.इसीलिए तमाम विश्लेषकों ने न्याय पत्र के रूप में जारी कांग्रेस के घोषणापत्र को ऐतिहासिक और अभूतपूर्व करार दिया था. इस न्याय पत्र के जोर इंडिया गठबंधन जीत के करीब पहुँच गया था. उस बात से उत्साहित होकर कांग्रेस अपने सामाजिक न्याय के एजेंडे को और विस्तार दी है.अब तक सामाजिक न्यायवादी दलों के आरक्षण की लड़ाई सरकारी और निजी क्षेत्र की नौकरियों सहित न्यायपालिका और प्रमोशन में आरक्षण इत्यादि तक महदूद थी: कांग्रेस अब उसे शक्ति के प्रायः समस्त स्रोतों तक विस्तार देते दिख रही है.इसकी झलक राहुल गांधी के हाल के कुछ बयानों में देखी जा सकती है. ‘ पिछड़ी जातियों राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने के लिए इस समाज के लोगों को संसद यह विधायक तो बनाया जा रहा है,लेकिन ऐसा प्रतिनिधित्व किसी मतलब का नहीं है.संस्थागत शक्ति जैसे नौकरशाही, कॉर्पोरेट और ख़ुफ़िया एजेंसियों में पिछड़ी जातियों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं!’ वह पारंपरिक आरक्षण से आगे बढ़कर पॉवर स्ट्रक्चर में दलित ,आदिवासी,पिछड़ों ,अल्पसंख्यकों के भागीदारी की बात उठा रहे हैं। इससे कांग्रेस निश्चय ही सामाजिक न्याय को एक नई ऊंचाई देती प्रतीत हो रही है। ऐसी कांग्रेस के साथ चलने का मन बनाना वक्त का तकाजा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *