Bihar Political News: बिहार पर भाजपा की निगाह
अलखदेव प्रसाद ‘अचल’
Bihar Political News: मोदी और शाह यह तो कहते जा रहे हैं कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही 2025 के बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा जाएगा, परंतु यह नहीं कह पा रहे हैं कि चुनाव के बाद नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री रहेंगे।
न्यूज़ इंप्रेशन
Bihar: वैसे बिहार में भाजपा का गठबंधन के साथ सरकार में तो हिस्सेदारी रही ही है। जिसका नेतृत्व के नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के रूप में करते आ रहे हैं। परंतु बीजेपी के अंदर एक कसक जरूर है कि बिहार में हमारी अपनी सरकार होती। अगर सरकार गठबंधन की भी बनी, तो इस बार मुख्यमंत्री बीजेपी का हो। वैसे भाजपा यह सपना कई वर्षों से देखती आ रही है, परंतु वह सपना अभी तक पूरा होता दिखाई नहीं दिया। परंतु 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा अपना यह सपना किसी भी कीमत पर पूरा कर लेना चाहती है। वैसे यह सपना पूरा करने के लिए भाजपा ने 2020 के बिहार विधानसभा के चुनाव में भी विसात बिछाई थी और वह चिराग पासवान को आगे कर जदयू की अधिक से अधिक सीटों पर उम्मीदवार उतारने की चाल चली थी। जिसमें कई भाजपा के नेता भी अपनी पार्टी से इस्तीफा देकर लोजपा की टिकट पर चुनाव लड़े थे। इसका परिणाम यह हुआ था कि लोजपा को तो नुकसान उठाना पड़ा था, पर भाजपा दूसरी बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आयी थी। इसका खामियाजा जदयू को भुगतना पड़ा था कि उसे मात्र 43 विधायकों पर ही संतोष करना पड़ा था। उसे तीसरे पायदान पर चल जाना पड़ा था। जिसकी उसे कसक भी रही थी।पर जदयू कर भी क्या सकता था? फिर भी भाजपा को नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने की मजबूरी थी । क्योंकि भाजपा जानती थी कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाएंगे, तो वे महागठबंधन के साथ सरकार बना लेंगे और मुख्यमंत्री बन जाएंगे। फिर हमलोगों को हाथ मलते रह जाना पड़ेगा। भाजपा यह भी समझती थी कि अगर नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ स्थाई रूप से सरकार चलायेंगे, तो बिहार में हमारी जमीन भी खिसक जाएगी।
बहुमत आने के बाद BJP अपना मुख्यमंत्री बनाने की विसात अभी से बिछा रही
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा नीतीश कुमार को आगे करके चुनाव लड़ना तो चाहती है, परंतु चुनाव में बहुमत आने के बाद अपना मुख्यमंत्री बनाने की विसात अभी से बिछा रही है। इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि मोदी और शाह अपने वक्तव्य में यह तो कहते जा रहे हैं कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही 2025 के बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा जाएगा, परंतु यह नहीं कह पा रहे हैं कि चुनाव के बाद नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री रहेंगे। इसके बजाए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह दोनों ही नेता यह कहकर मामलों को टाल दे रहे हैं कि चुनाव के बाद जनता जैसा चाहेगी, वैसा किया जाएगा। इधर कुछ सालों से नीतीश कुमार की तबीयत पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। सवाल उठना लाजिमी भी है। क्योंकि जिस तरह से वे लगातार विधानसभा के अंदर या मंचों पर अशोभनीय हरकत करते देखे जा रहे हैं, वैसी उम्मीद उनसे नहीं की जा सकती थी। भाजपा इस भी बोलने से कतराती नज़र आ रही है। इस पर भाजपा के नेता मौन ही देखे जा रहे हैं। पर भीतर-भीतर खुश इसलिए भी रहते हैं कि इससे हमलोगों को फायदा ही होगा। हमलोगों को कहने के लिए भी होगा कि चूंकि नीतीश कुमार पूरी तरह से अस्वस्थ चल रहे हैं। इसलिए हम अपना मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं।
भाजपा गठबंधन के साथ नीतीश को सटे रहने का सवाल
वैसे भाजपा दिखाने के लिए तो कुशवाहा वोटरों के लिए अभी से सम्राट चौधरी को अगली पंक्ति के नेता के रूप में फेश कर रही है कि अगर बिहार में भाजपा की सरकार बनी, तो सम्राट चौधरी ही हमारे नेता होंगे, परंतु लोगों का मानना है कि अगर भाजपा बहुमत में आ भी गई, तो सम्राट चौधरी का वही हश्र होगा, जो उत्तर प्रदेश में केशव प्रसाद मौर्य का हुआ। इसलिए भाजपा किसे मुख्यमंत्री बनाएगी, यह भी पत्ता खोल नहीं पा रही है। और संभावना है कि अंत तक भाजपा यह पता खोल भी नहीं पाएगी। जहां तक भाजपा गठबंधन के साथ नीतीश कुमार को सटे रहने का सवाल है, तो लोगों का मानना है कि उनकी कहीं -न-कहीं मजबूरी है। उन्हें भी ईडी और सीबीआई का डर सता रहा है। अन्यथा उनको भीतर से भाजपा के साथ चुनाव लड़ने का मन नहीं है। क्योंकि वे राजनीति के पक्के खिलाड़ी रहे हैं। और महाराष्ट्र में इस बार जिस तरह से भाजपा ने एकनाथ शिंदे के साथ खेल किया। नीतीश कुमार को जरूर इसका एहसास होगा कि ऐसा न हो कि भाजपा बिहार में हमारे साथ भी वैसा ही खेला कर दे। राजनीतिज्ञों के अनुसार इसकी पूरी संभावना भी है।
छोटी-छोटी पार्टियां सिर्फ सीटों के लिए बेचैन
जहां तक भाजपा के साथ जुड़े अन्य छोटी-छोटी पार्टियों जैसे चिराग पासवान, जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा आदि का सवाल है, तो उन लोग तो सिर्फ कुछ सीटों के लिए इतने बेचैन हैं। क्योंकि उन लोग यह भली-भांति जानते हैं कि भाजपा के पास सवर्णों के साथ वैश्य जातियों के एक मुश्त वोट तो है ही, इसके अलावा हिन्दुत्व के नाम पर अन्य पिछड़े और दलित जातियों के भी वोट हैं। इसके अलावा जब नीतीश कुमार भाजपा के साथ रहेंगे, तो पंद्रह बीस प्रतिशत वोट रहेंगे ही। ऐसी स्थिति में आसानी से जीत हासिल हो सकती है। ऐसा फैक्टर महागठबंधन के साथ नहीं है। अब देखना है कि प्रशांत किशोर का जनसुराज, मायावती की बसपा या अन्य दल कितना कुछ महा गठबंधन को नुकसान पहुंचा सकते हैं। वैसे यह कहा जा रहा है कि महागठबंधन चाहे जितना भी जोर लगा ले, लेकिन जब तक नीतीश कुमार भाजपा के साथ रहेंगे, तब तक एनडीए को बिहार में सरकार बनने से कोई नहीं रोक सकता है। अब देखना है कि इसमें कितनी सच्चाई है, परन्तु भाजपा अपनी विसात बिछाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना नहीं चाह रही है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो बार बार बिहार आ ही रहे हैं, भाजपा के अन्य दिग्गज नेता भी बिहार दौरे पर आने लगे हैं। अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में भाजपा को इसका कितना लाभ मिल पाता है?