Rahul Gandhi Marriage News: जाति ध्वंस की दिशा में युगांतकारी घटना साबित हो सकती है : राहुल-प्रणीति की शादी !

Rahul Gandhi Marriage News: लोकप्रियता की हदें तोड़ते : राहुल गांधी, यूं तो पिछले दो-तीन महीनों से ही यूट्यूब चैनलों पर प्रणीति शिंदे से राहुल गांधी की शादी की संभावना जताई जा रही है, पर, विगत एक सप्ताह से ऐसे वीडियोज की बाढ़ आई हुई है।

एचएल दुसाध
(लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के अध्यक्ष हैं)

न्यूज इंप्रेशन

Delhi: राहुल गांधी अपने जीवन में जनप्रियता के शिखर पर हैं। इस मामले में एक से नौ तक वही हैंः दूसरों की गिनती नंबर 10 से शुरू होती है। उनकी जनप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने रामचेत मोची के दुकान पर जिस चप्पल में कुछ टांके लगाए, उसकी कीमत 30 लाख तक हो गई है और लोगों मे खरीदने की होड मैच गई है। इसे बेचकर निहायत ही गरीब रामचेत अपनी दुरावस्था से काफी हद तक उबर सकते हैं, लेकिन, उनकी राहुल गांधी के प्रति श्रद्धा ऐसी है कि इसे वह अपनी भावी पीढ़ियों को दिखलाने के लिए सुरक्षित रखना चाहते हैं। ऐसे में खरीदने के इच्छुक व्यक्ति निराश होकर उनके द्वारा सिली गई चप्पल को माथे से लगाकर ही अपना जीवन धन्य कर रहे हैं। किसी शख्स की लोकप्रियता और उसके प्रति श्रद्धा का ऐसा दृष्टांत शायद ही भारत की हिस्ट्री में देखने को मिला होगा! आज दलित उन्हें सामाजिक न्याय का नया आइकॉन मान रहे हैं तो ढेरों लोग उन्हे भारत की आखिरी उम्मीद बता रहे हैं। कुछ लोग उन्हे गौतम बुद्ध का नया अवतार करार दे हैं तो प्रायः 80 प्रतिशत लोग उन्हे अबिलंब प्रधानमंत्री होते देखना चाहते हैं। लोग उन्हें इतना चाहते हैं कि लाल किले पर स्वाधीनता दिवस समारोह में जब उन्हे पीछे की पंक्ति में बिठाया जाता है तो पीएम मोदी के लंबे भाषण को भूलकर जनता उनकी चर्चा मे मशगूल हो जाती है। उनकी जनप्रियता के समक्ष भारतीय राजनीति में रॉक स्टारों जैसी हैसियत इन्जॉय करने वाले प्रधानमंत्री मोदी इस कदर निस्तेज हो गए हैं कि उन्हें देखकर हर किसी में उनके लिए करुणा पैदा होने लगी है। जो राहुल गांधी आज व्यक्ति व नेता के रूप में छा गए हैं, वह आजकल एक अन्य कारण से भी चर्चा में हैं और वह है उनकी शादी!
चैनलों पर वायरल हो रही है : राहुल-प्रणीति के शादी की संभावना
यूं तो पिछले दो-तीन महीनों से ही यूट्यूब चैनलों पर प्रणीति शिंदे से राहुल गांधी की शादी की संभावना जताई जा रही है, पर, विगत एक सप्ताह से ऐसे वीडियोज की बाढ़ आई हुई है, जिनमें दावा किया जा रहा है कि दुखों और सिर्फ दुखों का सामना करने वालीं आयरन लेडी सोनिया गांधी के घर में प्रियंका गांधी की शादी के लंबे समय बाद खुशियों की बारात आने वाली है। आगामी नवंबर में राहुल और प्रणीति शादी करने जा रहे हैं और इसके लिए सोनिया और प्रियंका गांधी ने अपनी सहमति दे दी है। इसे लेकर यूट्यूबरों में ऐसा उत्साह है मानों खुद उनके बेटा-बेटी की शादी होने जा रहे हैं। यूट्यूबर बड़े राजनीतिक विश्लेषक की भूमिका में अवतरित होकर यह दावा भी किए जा रहे हैं कि इस शादी से राहुल गांधी को व्यक्तिगत के साथ भारी राजनीतिक फायदा भी होगा। जिन तबकों को न्याय दिलाने के लिए वह ‘जितनी आबादी- उतना हक’ की बात कर रहे हैं, वे कांग्रेस से इस कदर जुड़ जाएंगे कि उन्हें प्रधानमंत्री बनने से कोई रोक ही नहीं पाएगा।यूट्यूबरों की भांति ही उनके चैनलों को देखने वालों में भी भारी उत्साह है, इसका अनुमान चैनलों पर आए दर्शकों की इन प्रतिक्रियाओं से लगाया जा सकता है। राहुल-प्राणीति की भावी शादी पर लोगों की राय है दृ‘इससे बड़ा चमत्कार तो जाति व्यवस्थित समाज में हो ही नहीं सकता, बधाई, अगर ये सत्य होता है तो, ‘साक्षात शिव-पार्वती जैसी जोड़ी’; ये ‘जोड़ी बेमिसाल रहेगी, एडवांस में अपार शुभकामनाएं’, यदि यह शादी होती है तो लगता है भारत का भविष्य उज्ज्वल होने वाला है। क्योंकि यही एक फासला है जिसने भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि को धूमिल किया हुआ है। जाति यदि समाप्त होगी, तभी यह देश मिलकर आगे बढ़ेगा : दोनों की जोड़ी को अग्रिम शुभकामनाएं’, राहुल-प्रणीति की शादी 85 प्रतिशत जनता के लिए लाभकारी होगी’! चैनलों पर आई ये टिप्पणियां बताती है कि देश राहुल गांधी और प्रणीति शिंदे को विवाह के बंधन में आबद्ध होते देखना चाहता है और यह परवान नहीं चढ़ा तो लोगों में भारी मायूसी आएगी! बहरहाल राहुल- प्रणीति की शादी होती है तो निश्चय ही दुखियारी मदर इंडियाः सोनिया गांधी के घर में रौनक आएंगी तथा कांग्रेस पार्टी का भाग्य बदल जाएगा, लेकिन इसका बड़ा लाभ जाति ध्वंस के मोर्चे पर मिलेगा!

अन्तर्जातीय विवाह को स्वीकार्य बनाने में व्यर्थ रहे अबतक के प्रयास

जहां तक जाति तोड़ने का सवाल है, इसे गंभीर समस्या मानकर सदियों से ही इसे तोड़ने का प्रयास होता रहा। लेकिन इसे तोड़ने का असली उपाय अन्तर्जातीय विवाह है, यह बात विश्व की महानतम किताबों में से एक : जाति का विनाश में बाबा साहब डॉ. आंबेडकर सुझाया। पिछले प्रायः 90 सालों से अन्तर्जातीय विवाह को जाति ध्वंस का सबसे प्रभावी उपाय मानते हुए असंख्यक नेता- लेखक-एक्टिविस्ट इसे लोकप्रिय बनाने में जुटे रहे और आज भी जुटे हुए हैं। लोग अन्तर्जातीय विवाह की दिशा में सोत्साह आगे बढ़ें इसके लिए स्वामी विवेकानंद जैसों का यह संदेश-अन्तर्जातीय विवाह से हिंदुओं मे जीवंतता आएगी.. अपनी जाति में विवाह करने से हिंदुओं का रक्त दूषित हो गया है इसलिए लोग शारीरिक रूप से क्षीण होते जा रहे हैंः विवाह के घेरे को व्यापक बनाकर ही हम अपनी संतानों में एक नया और भिन्न प्रकार का रक्त संचारित कर सकते हैं-भी पाठ्य दृ पुस्तकों के जरिए प्रसारित किया जाता रहा हैं। कानून बनाकर हिंदुओं को अनेकों अमानवीय प्रथाओं और विश्वासों से निजात दिलाने वाले अंग्रेजों ने अन्तर्जातीय विवाह को मान्यता देने के लिए 1872 में स्पेशल मैरिज एक्ट पास किया। स्वाधीन भारत में अदालतें भी बार-बार ऐसे विवाहों को वैधता प्रदान कर बढ़ावा देती रहीं; तमाम राज्य सरकारें भी पुरस्कार राशि की घोषणा के जरिए अन्तर्जातीय विवाहों को बढ़ावा देने के काम में जुटी रहीं और आज भी इसके लिए अच्छा-खासा राशि बाँट रहीं हैं, पर, स्थिति निराशाजनक ही है। लेकिन हर संभव प्रयासों के बाद भी हिन्दू नहीं सुधरे और आज 21वीं सदी में भी अन्तर्जातीय विवाह करने वाली अपनी ही संतानों का प्राण हरण करने में उनको विवेक दंश नहीं होता। जहां तक देश के बुद्धिजीवी वर्ग का सवाल है, जो आंबेडकर के अनुसार मुख्यतः ब्राह्मण वर्ग से आते हैं, अन्तर्जातीय विवाह के जुर्म मे अपनी ही संतानों तक की जान लेने वाले हिंदुओं की क्रूरता के लिए सामान्यतया अशिक्षा, दकियानूसपन, सामाजिक पिछड़ापन इत्यादि को जिम्मेवार ठहरा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। वास्तव में हमारे बुद्धिजीवी कुछ गौड़ कारणों को चिन्हित कर अपने उस धर्म को कलकित होने से बचाने में सदा तत्पर रहते हैं जो अन्तर्जातीय विवाह को महा-पाप मानता है। महा पाप के डर से ही हिन्दू इस दिशा में आगे नहीं बढ़ते।
अन्तर्जातीय विवाह के निषेध के पीछे : हिन्दू धर्म का अर्थशास्त्र

वैसे तो हिन्दू धर्म में अनेकों कार्य ही निषिद्ध व निंदित हैं किन्तु, सर्वाधिक निंदित वर्ण-संकरता है जो दो भिन्न जातियों के मिलन से घटित होती है। पर, शास्त्रों की निषेधाज्ञाओं के बावजूद हिन्दू बहुल भारत समाज मे अवैध तरीके से प्रचुर मात्रा में जाति सम्मिश्रण घटित हुआ है। इसीलिए तो भारतवर्ष नृतत्वविदों द्वारा ‘जातियों के विगलन पात्र’ के रूप में चिन्हित किया गया है। डॉ. आर भंडारकर ने ‘हिन्दू आबादी में विदेशी तत्व’ नामक अपने आलेख में लिखा है-‘भारत में शायद ही कोई श्रेणी या वर्ग होगा,जिसमें विजातीय अंश न हो! विदेशी रक्त का मिश्रण केवल लड़ाकू श्रेणीयों अर्थात राजपूतों और मराठाओं में ही नहीं वरन ब्राह्मणों में भी है, जो कि इस धोखे में हैं कि हममें कोई विजातीय रक्त नहीं मिला है।‘ बहरहाल वर्ण-संकरता को निषिद्ध व महापाप घोषित करने के पीछे प्राचीन आर्य/हिन्दू मनीषा का दूरगामी उद्देश्य हिन्दू धर्म के अर्थशास्त्र को हर खतरे से सुरक्षित रखना रहा।

कर्म- शुद्धता के सिद्धांत के जरिए सवर्णों को आरक्षित किए गए शक्ति के समस्त स्रोत

जिसे हिन्दू धर्म कहा जाता है, वास्तव में वह वर्ण-धर्म हैं, जिसका संचालन वर्ण-व्यवस्था के द्वारा होता रहा। वर्ण दृ धर्म में चार वर्णोंः ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्रातिशूद्रों के लिए जन्म-सूत्र से पेशे/कर्म निर्दिष्ट रहे। ये पेशे कर्म ही विभिन्न वर्णों के धर्म रहे। ब्राह्मण का धर्म/कर्म अध्ययन-अध्यापन,पौरोहित्य एवं राज्य संचालन में मंत्रणादान; क्षत्रिय का धर्म राज्य-संचालन, सैन्य-वृत्ति; वैश्य का धर्म पशुपालन, व्यवसाय-वाणिज्य और शुद्रातिशूद्रों का धर्म रहा तीन उच्चतर वर्णों की सेवा, वह भी पारिश्रमिक रहित। वर्ण धर्म में पेशों को विचलनशीलता निषिद्ध रही। ऐसा होने पर अधर्म की सृष्टि होती। हिन्दू अधर्म से दूर रहें, इसके लिए कर्म-शुद्धता का सिद्धांत कठोरता पूर्वक लागू रहा।कर्म-शुद्धता के लिए हिन्दू धर्म में पेशों की विचलनशीलता निषिद्ध रही। इससे कर्म-संकरता की सृष्टि होती जो कि पाप घोषित रही। पेशों की विचलनशीलता की निषेधाज्ञा के कारण वर्ण-धर्म में भिन्न-भिन्न पेशे/कर्म भिन्न-भिन्न वर्णों के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी के लिए निर्दिष्ट होकर रह गए। इस क्रम में वर्ण-व्यवस्था नें एक आरक्षण-व्यवस्था का रूप ले लिया, जिसे हिन्दू आरक्षण कहते हैं। हिन्दू आरक्षण में शक्ति के समस्त स्रोत(आर्थिक, राजनीतिक , शैक्षिक और धार्मिक) चिरकाल के लिए ब्राह्मण-क्षत्रिय और वैश्यों से युक्त सवर्णों के लिए आरक्षित होकर रह गए।

हिन्दू आरक्षण को अटूट रखने के लिए रचा गया : वर्ण-शुद्धता का सिद्धांत

कर्म-शुद्धता की अनिवार्यता और कर्म-संकरता की निषेधाज्ञा के जरिए शक्ति के समस्त के स्रोत सवर्णों के लिए आरक्षित करने के बाद इसे हमेशा के लिए सुरक्षित करने के मकसद से आर्य मनीषियों ने हिन्दू समाज को विच्छिन्नता और वैमनस्यता की बुनियाद पर विकसित करने की परिकल्पना की। इसके लिए भ्रातृत्व को बढ़ावा देने वाले हर स्रोत को रुद्ध किया । दो भिन्न जातियों के विवाह के माध्यम से एक दूसरे के निकट आने से भ्रातृत्व को बढ़ावा मिल सकता था और इसके जोर से शक्ति के स्रोतों से बहिष्कृत की गई जातियाँ संगठित शक्ति के स्रोतों के एकाधिकारी वर्ग को चुनौती दे सकती थीं। इस संभावना के निर्मूलन के लिए ही वर्ण-संकरता का सिद्धांत आविष्कृत कर उसे धर्मशास्त्रों द्वारा पाप व निषिद्ध घोषित कर दिया गया। सिर्फ वर्ण-संकरता को पाप ही घोषित नहीं किया गया, बल्कि उसकी सृष्टि की हर संभावना को भी निर्मूल किया गया। इस मकसद से आर्य मनीषियों ने सती-प्रथा, विधवा-प्रथा, बालिका विवाह और बहुपत्निवादी दृ प्रथाओं के साथ अछूत-प्रथा को जन्म दिया। कहा जा सकता है कि विदेशागत आर्यों ने कर्म शुद्धता की आड़ मे धर्म शुद्धता की रक्षा के जरिए चिरकाल के लिए अध्ययन-अध्यापन-पौरोहित्य, शासन-प्रशासन, व्यवसाय-वाणिज्य का अधिकार अपनी भावी पीढ़े के हाथों सौंपने का एक ऐसा अनुपम अर्थशास्त्र विकसित किया, जिसकी पूरी दुनिया मे मिसाल ही नहीं है।इसी अर्थशास्त्र को अक्षत रखने के लिए वर्ण-शुद्धता का सिद्धांत का रचा गया। कर्म और वर्ण-शुद्धता तथा कर्म और वर्ण-संकरता के सिद्धांत स्थापित करने के लिए ही हिन्दू मनीषियों ने वेद-पुराण, रामायण-महाभारत इत्यादि सहित लाखों पन्ने में धार्मिक साहित्य रचा, जिनका मकसद विदेशागत आर्यों की भावी पीढ़ी को उत्पादन के साधनों अर्थात शक्ति के स्रोतों से लैस करने के साथ मूलनिवासी शुद्रातिशूद्रों को शक्तिहीन गुलामों मे तब्दील करना रहा। आर्यों द्वारा तैयार अर्थशास्त्र को अक्षत रखने में वर्ण-शुद्धता का जो सिद्धांत वजूद में आया, उससे हिन्दू उच्च और निम्न वर्णों के कई हजार भागों में बंटने के लिए अभिशप्त हुआ। कई हजार भागों में बंटे हिन्दू छिन्न दृभिन्न होकर रह गए और मुट्ठी-मुट्ठी भर विदेशियों को इस देश को पराधीन बनाकर लूटने में कोई दिक्कत नहीं हुई।

अन्तर्जातीय विवाह का सैलाब पैदा कर सकती हैः राहुल- प्रणीति की जोड़ी !

भ्रातृत्व का कंगाल और दूषित रक्त से जर्जरित भारत को दुरुस्त करने के लिए देश में अन्तर्जातीय विवाह का सैलाब पैदा करना बहुत जरूरी है। इस दिशा में हुए अबतक के सारे प्रयास अपेक्षित परिणाम देने में विफल रहे। ऐसे विवाहों की स्वीकार्यता बढ़ाने में देश के फिल्म और खेल जगत से जुड़े सेलेब्रेटीज ने अनजाने मे अपने स्तर पर काफी काम किया। पर, इनके दीवाने हिन्दू अन्तर्जातीय दृ विवाह का सैलाब पैदा न कर सके। अब आखिरी उम्मीद जननायक राहुल गांधी से हैं। आज की तारीख मे जिस तरह देश उन्हें अपने हृदय सिंहासन पर आरूढ़ कर दिया है, वैसी स्थिति में प्रणीति शिंदे से उनकी शादी अन्तर्जातीय विवाह का सैलाब पैदा कर सकती है। भारत जैसे जड़ समाज में उनकी शादी क्रांति घटित कर देगी, इसके प्रति आशावादी हुआ जा सकता है।अबतक देश ने कई अन्तर्जातीय विवाह वाले जोड़े देखें हैं, लेकिन जननायक राहुल गांधी और नेतृत्व के नसर्गिक गुणों से समृद्ध प्रणीति शिं्ांदे की जोड़ी इनमें सर्वोत्तम साबित होगी, यह बात दावे से कही जा सकती है! भारत के सबसे प्रतिष्ठित नेहरू-गांधी परिवार से प्रणीति शिंदे के जुड़ने से दलित समुदाय भी खुद को गौरवान्वित महसूस करेगा, जिसका बड़ा लाभ राहुल गांधी को मिल सकता है।

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