Lok Sabha Election Bihar 2024: एक बिहारी सब पर भारी

Lok Sabha Election Bihar 2024: अगर हम बिहार लोकसभा चुनाव की बात करें, तो इतना तो स्पष्ट है कि इस बार एनडीए गठबंधन को बिहार की 40 में से 2019 की तरह 39 सीटें नहीं आने जा रही है। 39 से गिरकर वह सीटें कहां ठहरेगी, यह भी बताना मुश्किल है।

अलखदेव प्रसाद ‘अचल’

न्यूज इंप्रेशन

Bihar : वैसे 2024 के लोकसभा चुनाव का क्या परिणाम आएगा, उसके बारे में ठीक-ठाक कहना काफी मुश्किल है कि बिहार में कौन गठबंधन कितनी सीटें जीतेगा। क्योंकि भाजपा सरकार ने जिस तरह से चुनाव आयोग सहित सारे तंत्रों को अपनी मुट्ठी में कर रखा है, उससे अंदाजा लगा पाना काफी मुश्किल है। इसलिए जमीन पर दिखने के बजाय नतीजे चौंकाने वाले भी आ सकते हैं। क्योंकि पहले भी नतीजे चौंकाने वाले आते रहे हैं। इसको लेकर कमोवेश ईवीएम पर भी सवाल उठाते रहे हैं। अगर हम बिहार लोकसभा चुनाव की बात करें, तो इतना तो स्पष्ट है कि इस बार एनडीए गठबंधन को बिहार की 40 में से 2019 की तरह 39 सीटें नहीं आने जा रही है। 39 से गिरकर वह सीटें कहां ठहरेगी, यह भी बताना मुश्किल है। और इसका मुख्य कारण यह है कि हर लोकसभा क्षेत्र में एनडीए और इंडिया गठबंधन के उम्मीदवारों के बीच कड़ा मुकाबला है बताया जाता है कि इस बार जहां एनडीए के उम्मीदवार जीतेंगे भी, वे लाखों के अंतर से कहीं भी नहीं जीत पाएंगे।

भाजपा और जदयू के नेताओं को पानी पिला कर रख दिया

बिहार लोकसभा चुनाव में दिलचस्प बात यह है कि चुनाव के नतीजे चाहे जो भी आए, परंतु एक बिहारी सब पर भारी पड़ता जरूर दिखाई दे रहा है, इसे नकारा नहीं जा सकता है ।और वह बिहारी है—राजद नेता तेजस्वी यादव। तेजस्वी यादव महज एक विधायक हैं। कभी कभी महागठबंधन की सरकार बनी थी, उसमें वे उपमुख्यमंत्री रहे थे। लेकिन महज 33-34 साल का नौजवान ने इस लोकसभा चुनाव में भाजपा और जदयू के बड़े-बड़े नेताओं को पानी पिला कर रख दिया है। इसे अच्छे-अच्छे राजनीतिक विश्लेषक और अच्छे-अच्छे पत्रकार भी मानने लगे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह तेजस्वी यादव की चुनावी सभाओं में स्वत: भीड़ उमड़ रही है। जिस तरह से तेजस्वी यादव को सुनने व देखने के लिए लोग टूट रहे हैं। वे श्रोता या दर्शक भाड़े पर के नहीं हैं। वे इसलिए उनकी सभाओं में जा रहे हैं कि तेजस्वी के प्रति उनके मन में श्रद्धा है। वे तेजस्वी के पक्के समर्थक हैं। वे तेजस्वी को चाहने वाले लोग हैं। क्योंकि तेजस्वी यादव अभी जिस दल की राजनीति कर रहे हैं, उनके लोग भी ऐसे नहीं हैं, जो गाड़ियां भेज -भेजकर तेजस्वी को सुनने के लिए बुला सकें। जबकि तेजस्वी की सभा में कोई सुविधाएं भी नहीं होती है। न बैठने के लिए कुर्सियों की व्यवस्था रहती है, न पर्याप्त पंडाल ही होते हैं, ताकि धूप से राहत मिल सके। न खाने की व्यवस्था की जाती है,न नाश्ते की।फिर भी उनकी सभाओं में उतनी ही भीड़ उमड़ रही है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है।

नीतीश कब क्या बोलेंगे, कहना मुश्किल

दूसरी तरफ एनडीए की जहां-जहां सभाएं हो रही हैं। उनकी सभाओं में बेहतर से बेहतर व्यवस्थाएं की जा रही हैं। सुशोभित मंच बनाए जा रहे हैं ।पर्याप्त पंडाल लगाये जा रहे हैं। पर्याप्त कुर्सियां लगाई जा रही हैं। फिर भी उतनी भीड़ नहीं एकत्रित हो पा रही हैं। जबकि कहा यह जा रहा है कि भीड़ एकत्रित करने के लिए गांव-गांव में गाड़ियां भेजी जा रही हैं। उससे भी जब लोग आने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं, तो उन्हें प्रति व्यक्ति दो चार सौ रुपए दिए जा रहे हैं। तब जाकर उतनी भीड़ एकत्रित हो पा रही है। अगर भाड़े पर लोगों को न मंगाया जाए, तब क्या होगा, इसका भी अंदाजा लगाया जा सकता है। सबसे दुर्गति एनडीए गठबंधन के साथ गए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हो रही है कि वे जहां भी चुनावी सभा कर रहे हैं, वहां भीड़ ही नहीं जमा हो रही है। जो साबित करता है कि जनता उनकी बातें सुनने के लिए तैयार नहीं है। कहीं-कहीं तो नीतीश कुमार हास्यास्पद इस रूप में बनते दिखाई दिए कि उन्होंने श्रोताओं से कहा कि अगर उम्मीदवार को जीतना चाहते हैं, तो सभी लोग हाथ उठाकर समर्थन करें।उसमें जो हाथ नहीं उठा रहे हैं, उनको नीतीश कुमार कह रहे हैं कि हथवा काहे नहीं उठाते हो जी ? अपने कार्यकर्ता से कहते हैं कि उनलोगों को कहिए, कहिए न कि हथवा उठाए ।यह दशा हो गई है। इससे उन्हें भी समझ में आने लगा है कि जनता पर पहले जिस तरह की पकड़ थी, अब उस तरह की पकड़ नहीं है। जनता हमसे दूर होने लगी है। इसका मुख्य कारण है नीतीश जी का बार बार पलटना। वैसे इस बार भाजपा ने जिस स्वार्थ में नीतीश कुमार को एनडीए गठबंधन में साथ लिया था कि नीतीश कुमार आ जायेंगे, तो बिहार में निश्चित रूप से हमलोग भारी बहुमत से जीत दर्ज कर लेंगे, परन्तु आम जनता इसलिए भी नीतीश कुमार की बातों पर विश्वास नहीं कर रही है कि ये कब फिर इंडिया गठबंधन की तरफ पलटी मारेंगे, कहना मुश्किल है। ये कब क्या बोलेंगे, कहना मुश्किल है।

एनडीए गठबंधन के नेताओं की उड़ गई है नींद

जिस तरह से चुनावी सभा में तेजस्वी को सुनने के लिए लोग आ रहे हैं। भीड़ उमड़ रही है। उसको देखकर एनडीए गठबंधन के नेताओं की नींद उड़ गई है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसी स्थिति में जनता को किस रूप में अपनी तरफ मोड़ा जाए। अगर बिहार की बात की जाए, तो एनडीए गठबंधन में कोई ऐसा नेता नहीं है, जो तेजस्वी के काट के रूप में साबित हो सके। न ही नीतीश कुमार हैं, न हम पार्टी के जीतन राम मांझी। लोजपा नेता चिराग पासवान की सभा में जुगाड़ से भीड़ लग जाती हो, परंतु आम जनता को आकर्षित करने की क्षमता चिराग पासवान में भी नहीं है। सबसे बड़ी पार्टी कहे जाने वाली भाजपा के बिहार के अध्यक्ष सम्राट चौधरी की बात की जाए या उस गठबंधन में कुशवाहा के बड़े नेता उपेंद्र कुशवाहा की बात, परंतु दूसरी जातियों को प्रभावित करने की बात तो कोसों दूर है, इन दोनों नेताओं की पकड़ खुद अपनी जाति पर तक नहीं है। इस बार के चुनाव में इन दोनों नेताओं को किसी भी क्षेत्र में कुशवाहा जाति के लोगों ने नहीं सुनी। ऐसी स्थिति में पूरा चुनाव भाजपा के शीर्षक नेताओं पर ही जाकर टिक गया है। इसे हास्यास्पद ही कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री होकर भी नरेंद्र मोदी को बार-बार बिहार की दौड़ लगानी पड़ रही है। आजादी के बाद किसी प्रधानमंत्री ने बिहार में इतनी चुनावी सभाओं को संबोधित नहीं किया था। अगर भाजपा की स्थिति बिहार में अच्छी होती, सबकुछ ठीक ठाक रहता,तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पटना में आकर रोड शो नहीं करना पड़ता। दिल्ली छोड़कर कहीं रात नहीं बिताने वाले नरेंद्र मोदी को पटना में रात्रि विश्राम करने की जरूरत नहीं पड़ती। यह सबकुछ साबित करता है कि एक बिहारी युवा नेता नेता भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं के नाकों में दम कर रखा है।

तेजस्वी सब पर भारी पड़ता दिखाई पड़ रहा

ऐसे कहने के लिए तो इंडिया गठबंधन में भी बहुत सारी पार्टियां हैं। जिसमें मुख्य पार्टी कांग्रेस भी है। फिर भी तेजस्वी को न किसी कांग्रेस के नेताओं की जरूरत पड़ रही है और न किसी अन्य पार्टियों के नेताओं की। एकाध बार राहुल गांधी आ चुके हैं। अन्यथा यहां कांग्रेस के उम्मीदवारों के लोकसभा क्षेत्र में भी तेजस्वी यादव ही धूम मचाए हुए हैं और कांग्रेस उम्मीदवारों को भी तेजस्वी पर ही आस टिकी हुई है। वे भी जानते हैं कि हमारे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष या अन्य नेता भी यहां आ जाएंगे, तो उनसे भी कोई खास प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। सिर्फ नरेंद्र मोदी की ही बात नहीं है, बल्कि भाजपा के दूसरे नंबर के नेता गृह मंत्री अमित शाह भी बार-बार दौड़कर बिहार आ रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को भी दौड़-दौड़ कर बिहार आना पड़ रहा है। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हों या फिर भाजपा के फायर ब्रांड नेता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सभी को तेजस्वी को चुनौती स्वीकार करने बिहार आना पड़ रहा है। और तो और, भाजपा के जो भी फायर ब्रांड नेता बिहार आ रहे हैं, उनको अपना भाषण तेजस्वी को ही केंद्र में रखकर देना पड़ रहा है ।जबकि सभी मानते हैं कि तेजस्वी कोई राष्ट्रीय नेता न होकर एक क्षेत्रीय नेता हैं। उन लोग भी यह बात मानते हैं कि तेजस्वी प्रभाव के रूप में हम लोगों से भारी पड़ते जा रहे हैं। भले ही दिखावे के रूप में डींग हांकते हों। यह सब कुछ साबित करता है कि एक बिहारी तेजस्वी सब पर भारी पड़ता दिखाई पड़ रहा है।

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