Chirag Pasvan Politics: चिराग का बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट

Chirag Pasvan Politics: राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट का स्लोगन देकर लोगों को बहुत प्रभावित किया था। लोगों को लगने भी लगा था कि चिराग पासवान युवा नेता हैं। वह बिल्कुल अपने ही पिता रामविलास पासवान के नक्शे कदम पर चल रहे हैं।

अलखदेव प्रसाद ’अचल’
न्यूज इंप्रेशन

Bihar: राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट का स्लोगन देकर लोगों को बहुत प्रभावित किया था। लोगों को लगने भी लगा था कि चिराग पासवान युवा नेता हैं। कुछ अलग हटकर करना चाहते हैं। परंतु राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चिराग पासवान बिल्कुल अपने ही पिता रामविलास पासवान के नक्शे कदम पर चल रहे हैं। जिस तरह से रामविलास पासवान हमेशा अवसरवाद की राजनीति करते रहे थे। उनके लिए सबसे बड़ी चीज थी सत्ता। वे सत्ता सुख के इतने आदी हो गए थे कि वे सत्ता से अलग रहकर राजनीति करना नहीं चाहते थे। इसी की वजह से उन्हें प्रायः नेता मौसम वैज्ञानिक कहकर खिल्ली उड़ाते थे। अब वे बेचारे इस दुनिया में नहीं है। उनकी विरासत को उनके ही सुपुत्र चिराग पासवान संभाल रहे हैं, जो गर्व से कहते अघाते नहीं हैं कि हमारे पिताश्री गरीबों के मसीहा थे। हमारे पिता स्वाभिमानी थे। हमारे पिता संघर्षशील थे। हमारे पिता हमेशा अपने समाज और देश के विकास के बारे में सोचा करते थे।

चिराग को न बिहार से मतलब और न बिहार वासियों से
आज चिराग पासवान भी वही करते देखे जा रहे हैं,जो उनके पिता करते थे। जिससे साफ जाहिर होता है कि चिराग पासवान को न बिहार से मतलब है और न बिहार वासियों से मतलब है। उन्हें मतलब है, तो सिर्फ अपना से मतलब है। चिराग पासवान के पिता के निधन के बाद भाजपा ने इनका बंगला खाली करवाने के लिए जो बदसलूकी की थी। जिस तरह से बंगला से सारे सामान बंगला से बाहर फेंकवा दी थी, उसे सच्चा इंसान कभी भूल नहीं सकता है। लेकिन चिराग पासवान यह समझते रहे कि भूले बिना सत्ता सुख नहीं पाया जा सकता है। भाजपा के साथ सटे रहने पर निश्चित रूप से पिता के निधन के बाद मुझे मंत्री बना दिया जाएगा। परंतु भाजपा सरकार ने साथ रहते हुए भी उनके चाचा सहित उनके ही पांच सांसदों को अलग करवा दिया और चाचा पशुपति नाथ पारस को मंत्री बना दिया और चिराग पासवान को ठेंगा दिखा दिया। फिर भी चिराग पासवान की आंखें नहीं खुल सकी और मंत्री बनने की आस बांधे भाजपा के ही साथ रहे।

बिहार विस में चिराग की पार्टी जदयू को तो काफी नुकसान पहुंचायी थी

2020 के बिहार विधानसभा के चुनाव में भाजपा ने जदयू को कम सीटों पर निपटाने के लिए ऐसी तिकड़म रची थी कि बिहार विधानसभा में चिराग पासवान की पार्टी जदयू को तो काफी नुकसान पहुंचायी थी, परन्तु खुद भी शून्य पर आउट हो गई थी। जबकि जैसे -तैसे कर सुमित सिंह ने लोजपा के सिंबल पर चुनाव लड़कर जीता भी था, परंतु कुछ ही दिनों के बाद जदयू ने उन्हें अपनी पार्टी में शामिल कर लिया था। फिर भी चिराग पासवान भाजपा के साथ इसलिए सेट रहे कि शायद आज या कल मुझे मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया जाएगा। इसके बाद भी चिराग पासवान की आंखें नहीं खुल सकी। फलस्वरूप भाजपा के साथ ही रहे ।क्योंकि पिताजी की तरह ही उन्हें यह लग रहा था कि मोदी की लहर अभी कमी नहीं है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी केंद्र में अगर सरकार बनेगी, तो भाजपा की ही सरकार बनेगी ।ऐसी स्थिति में इंडिया गठबंधन में जाने के बाद हम संसद तो बन सकते हैं, परंतु वहां मंत्री बनने का कोई चांस नहीं रह सकेगा। ऐसी सोच रखने वाला चिराग से बिहार फर्स्ट और बिहारी फर्स्ट की क्या अपेक्षा रखी जा सकती है?

चिराग ने वैशाली से बागी सांसद वीणा को टिकट दे दी

फिलहाल 2024 के बिहार लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन की ओर से उन्हें 5 सीटें मिली। उनका मंशा था कि हम इस बार हाजीपुर से ही चुनाव लड़ें। शायद चिराग को लगने लगा था कि इस बार जमुई की जनता हमें नकार न दे। दूसरे चिराग हाजीपुर की सीट को अपनी विरासत की सीट समझ रहे थे। भाजपा ने उसे भी स्वीकार कर लिया। क्योंकि उसे चिराग को साथ रखने की सख्त जरूरत थी। भाजपा यह भली-भांति समझ रही है कि चिराग पासवान अगर इंडिया गठबंधन में चले गए, तो बिहार में लोकसभा की सीटें निकालना मुश्किल हो जाएगा। इसीलिए चिराग पासवान की सारी शर्तें मान ली। बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट का स्लोगन देने वाले चिराग पासवान ने पार्टी टूटने के बाद यह कहा था कि जो हमारे साथ विश्वासघात किया है, उसे इस बार किसी भी कीमत पर मैं टिकट नहीं दूंगा। इसके बावजूद भी चिराग पासवान ने वैशाली से बागी सांसद वीणा देवी को टिकट दे दी। शायद चिराग पासवान को विकट समय में साथ रहे कार्यकर्ताओं पर विश्वास नहीं हो सका। या फिर झोली भरने वाले नहीं मिले होंगे। जिस जमुई लोकसभा की सीट पर पिछली दफा चिराग पासवान ने खुद चुनाव लड़ा था। उस पर अपने ही बहनोई अरुण भारती के सिवा कोई समर्पित कार्यकर्ता नजर नहीं आया। इसलिए टिकट देना मुनासिब नहीं समझा।

नीतीश कुमार को असफल मुख्यमंत्री करार देते रहे

चराग पासवान जिस जदयू के आलाकमान नीतीश कुमार को हमेशा नाकाम मुख्यमंत्री के रूप में लोगों के बीच अपनी बातें परोसते रहे। जिस नीतीश कुमार को असफल मुख्यमंत्री करार देते रहे। समस्तीपुर लोकसभा सीट पर भी अपनी पार्टी का कोई दलित चेहरा चुनाव लड़ने के लिए नजर नहीं आया, तो जदयू के वरिष्ठ नेता व मंत्री अशोक चौधरी की पुत्री शांभवी चौधरी को टिकट दे दी। पता नहीं उनका टिकट देने के पीछे चिराग पासवान को क्या स्वार्थ या क्या मजबूरी रही? खगड़िया लोकसभा सीट से पिछली दफा महबूब अली कौसर इनकी ही पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़कर सांसद बने थे, परंतु वे पशुपति नाथ पारस के साथ अलग गए थे। कहा जाता है कि महबूब अली कौसर पुनःचिराग पासवान से टिकट चाहते तो थे, परंतु उनको टिकट नहीं दी गई। उनकी जगह पर कुशवाहा जाति के राजेश कुमार को चिराग पासवान ने टिकट दे दी। राजेश कुमार के संदर्भ में या कहा जाता है कि वे कोई बहुत बड़े राजनीतिज्ञ नहीं हैं। उनके पास राजनीतिक समझ नहीं है, परंतु राजेश कुमार मालदार व्यवसायी जरूर हैं ।इसीलिए माल के आधार पर उनको टिकट देकर वहां से उम्मीदवार बनाया गया। जिस चिराग पासवान की सोच ऐसी हो, जो सिर्फ और सिर्फ अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए सोचता हो, जो सिर्फ लंबे- चौड़े भाषण में विश्वास रखता हो, उस चिराग पासवान से बिहार फर्स्ट और बिहारी फर्स्ट की उम्मीद कैसे की जा सकती है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *