Bihar: सत्ता या सरोकार ?

Bihar : सत्ता की लालच में भाजपा से चिपकने वाले पिछड़े, अति पिछड़े, दलित व आदिवासी जाति के नेता स्वयं सत्ता की मलाई खाने के लिए अपनी जाति या समुदाय के लोगों से यही दलील देते हैं कि जब तक सत्ता में आपका नेता नहीं होगा, जब तक आपके अधिकारों के लिए नहीं लड़ेगा।

 

अलखदेव प्रसाद ‘अचल’

न्यूज इंप्रेशन

Bihar: आज सत्ता की लालच में भारतीय जनता पार्टी से चिपकने वाले पिछड़े, अति पिछड़े, दलित व आदिवासी जाति के नेता स्वयं सत्ता की मलाई खाने के लिए अपनी जाति या समुदाय के लोगों से यही दलील देते हैं कि जब तक सत्ता में आपका नेता नहीं होगा, जब तक आपके अधिकारों के लिए नहीं लड़ेगा, आपकी हक के लिए आवाज नहीं उठाएगा, तब तक विकास संभव नहीं है। इसीलिए आपके आदमी को सत्ता में जाना बहुत जरूरी है। भोले-भाले उनकी जाति के लोग इसे ही सच मान लेते हैं और सब कुछ भूल कर उन्हें वोट दे देते हैं। पर सत्ता में पहुंचते ही अपने ही नेता सब कुछ भूल जाते हैं। क्योंकि उनका मकसद जो पूरा हो जाता है। वे तो सिर्फ सत्ता सुख भोगने में लग जाते हैं। फिर अपनी जाति या समुदाय से सरोकार रखें या न रखें, इससे क्या फर्क पड़ता है?

मकसद में कामयाब हो गया, लोगों से सरोकार क्यों रखने जाएगा?

सीधी सी बात है कि जो अपने मकसद में कामयाब हो गया, फिर वह अपने लोगों से सरोकार क्यों रखने जाएगा? हां, अपनी ही जाति के कुछ लटकन-झटकन नेता होते हैं, उनकी दाल अवश्य सधती रहती है। जिसकी वजह से वैसे ही लोग नेता जी की तारीफ का पुल बांधते रहते हैं। उनकी जय जयकार करते रहते हैं और अपनी जाति या समुदाय के लोगों को यह बताते रहते हैं कि हमारे आदमी सरकार में मंत्री बन गए। इसलिए इनपर हमलोगों को गर्व होना चाहिए। ऐसे तो इस तरह के कई उदाहरण भरे पड़े हैं, जिससे आप चाहें तो सीख ले सकते हैं। परंतु जहां आपका विवेक ही मर गया हो।आपकी जाति के नेताओं ने आपके दिमाग में इतना कचरा भर दिया हो कि आप न सोच ही पाते हैं और न ही उससे सीख ही ले पाते हैं। फलस्वरूप बदहाली, उपेक्षा और तिरस्कार का शिकार होते रहना पड़ता है।हमारे जैसे लोग आपको बार-बार सीख लेने के लिए उत्प्रेरित भी करते रहते हैं, फिर पता नहीं क्यों असर नहीं पड़ पाता है?

यहां सावित्रीबाई फुले की क्या जरूरत है?

पिछले 26 जनवरी 2024 को गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजस्थान के बारा जिले में एक दलित शिक्षिका हेमलता बैरवा ने अपने सरकारी विद्यालय में गांधी जी की, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की और सावित्री बाई फुले की तस्वीर लगा रखी थी।बच्चों को यह बता रही थी कि देश के विकास में इन महापुरुषों का क्या योगदान रहा था ? शिक्षा के क्षेत्र में इनलोगों का क्या योगदान रहा था ? परंतु उस गांव के मनुवादी सोच के लोगों को वह तनिक भी अच्छा नहीं लगा कि विद्यालय में सरस्वती की तस्वीर की जगह सावित्रीबाई फुले की तस्वीर रखे। फिर क्या था! गांव के ही चार पांच लोग स्कूल पर पहुंच गए और सावित्रीबाई फुले की तस्वीर हटाने के लिए दबाव बनाने लगे थे।उनलोगों ने यह भी कहा कि यहां सावित्रीबाई फुले की क्या जरूरत है ? तुम तो सरस्वती माता का अपमान कर रही हो। अगर तस्वीर ही लगानी है, तो सरस्वती माता की तस्वीर लगाओ। इस पर अंबेडकरवादी सोच रखने वाली शिक्षिका हेमलता बैरवा ने साफ-साफ जवाब दिया कि सरस्वती की तस्वीर क्यों लगाने जाउं? शिक्षा के विकास में सरस्वती का क्या योगदान रहा था ? सरस्वती ने कितनी पाठशालाएं खोली थीं ? या शिक्षा के क्षेत्र में उसने क्या-क्या पहल की थी? फिर उसकी तस्वीर हम क्यों लगाने जाउं ? तुमलोग उसकी पूजा करना चाहते हो, तो करते रहो। मैं रोकने जाती हूं?

दलित शिक्षा मंत्री मदन ने शिक्षिका प्रेमलता को कर दिया निलंबित

पहले तो मनुवादियों ने शिक्षिका को खूब खरी-खोटी सुनाई। भला बुरा कहा और शिक्षिका से उलझते रहे। जब शिक्षिका इतना से भी नहीं मानी थी, तो उनलोगों ने दिखा देने की धमकी दे डाली थी। फिर भी दलित शिक्षिका प्रेमलता बैरवा पर इसका कोई असर नहीं हुआ था। अंत में मनुवादियों ने मामले को ऊपर पहुंचा दिया। फिर दूसरा कोई नहीं, बल्कि वहां के दलित शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने इस जिले के एक सभा में यह घोषणा की कि सरस्वती का अपमान करने वाली शिक्षिका प्रेमलता बैरवा को निलंबित किया जाता है। आज शिक्षा का प्रकाश फैलाने वाली वह वीरांगना शिक्षिका प्रेमलता बैरवा निलंबित हो चुकी है। और निलंबित करने वाला कोई और नहीं दलित मंत्री मदन दिलावर है। अगर प्रेमलता बैरवा की जगह कोई सवर्ण शिक्षिका होती और वह कुछ भी कर देती, तो मदन दिलावर जैसे मंत्री को निलंबित करने की हिम्मत नहीं होती। दलित मंत्री मदन दिलावर को अपनी जाति, अपने समुदाय से कोई मतलब नहीं था। उसे तो मतलब था कि हम प्रेमलता बैरवा को निलंबित कर अपने आका को खुश रखें। आका खुश रहेंगे, तभी तो हम सत्ता का सुख भोग सकेंगे। इससे भी तो दलित, पिछड़े, आदिवासी समुदाय के लोगों को अपनी आंखें खोलनी चाहिए कि हमारी जात का जो नेता सत्ता में पहुंचा है, तो अपनी सुख- सुविधा के लिए पहुंचा है। हमलोगों से कोई सरोकार नहीं है। अगर ऐसी बातें कहता है, तो वह हमें धोखा देता है। हमें सिर्फ छलता है। इसलिए उसकी बातों में नहीं आना चाहिए। आपलोगों ने देखा होगा कि जिस समय मध्य प्रदेश में एक आदिवासी युवक के सिर पर भाजपा का ही कार्यकर्ता पेशाब कर दिया था। जिसकी वजह से पूरे देश में काफी बवाल मचा था। उस समय राष्ट्रपति कोई और नहीं, आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू ही थी। लेकिन उनमें कोई सुगबुगाहट नहीं हुई थी ।क्योंकि उन्हें राष्ट्रपति का पद जो भा रहा था। फिर आदिवासियों के पक्ष में कैसे बोलने जाती? बोलकर अपनी सुख सुविधा कैसे खोने जाती?

सत्ता सुख भोगने वाले नेता आवाज उठाने नहीं जायेंगे

यहां आए दिन दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं ।पिछड़ी जातियों पर अत्याचार हो रहे हैं। उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार किये जा रहे हैं। उनकी हत्याएं की जा रही हैं। किसानों, मजदूरों पर ज़ुल्म ढाए जा रहे हैं। परंतु सत्ता सुख भोग रहे दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के नेताओं को सदन में उस पर आवाज उठाते, विरोध में बोलते कभी सुना क्या ? नहीं। क्योंकि उन्हें अपनी जाति और समुदायों से कोई सरोकार नहीं है। वे जानते हैं कि हम बोलेंगे, तो फिर सत्ता से बेदखल होना पड़ेगा। सत्ता सुख खोना पड़ेगा। इसीलिए वे सिर्फ सत्ता की मलाई खाने में लगे रहते हैं। जब तक इन जातियों के नेता अपनी जातियों को सत्ता के लिए इस्तेमाल करते रहेंगे, तब तक इन जातियों को इसी तरह कीड़ों की तरह जीवन गुजरना होगा। एक तो आपके सत्ता सुख भोगने वाले नेता आवाज उठाने नहीं जायेंगे।अगर आवाज भी उठायेंगे, तो इस सरकार में कोई नोटिस तक लेने वाला नहीं है। जैसा कि पूरे देश में देखा जा रहा है कि लोग धरना प्रदर्शन कर रहे हैं । प्रतिरोध कर रहे हैं,लेकिन सरकार पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। क्योंकि सरकार जानती है कि उनके नेता तो हमारी मुट्ठी में हैं।उनके नेता तो हमारे गुलाम हैं। आज भारतीय जनता पार्टी की सरकार इसी ढर्रे पर चल रही है। इसलिए दलित, पिछड़े और आदिवासियों के जनसामान्य लोगों को अपने वैसे नेता की पहचान करनी होगी और उन्हें सत्ता में जाने से बेदखल करना होगा। उनके मंसूबों पर पानी फेरना होगा।नहीं तो पश्चाताप करने के सिवा कोई चारा नहीं रह जाएगा।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *