Nitish Politics: नीतीश के दामन पर एक और धब्बा

Nitish Politics:नीतीश कुमार अपने आप को समाजवादी विचार का नेता मानते हों, परंतु उनमें समाजवादी सिद्धांत कभी नहीं देखा गया। जदयू को बिहार की सवर्ण जातियां कभी अपनी पार्टी समझकर वोट नहीं की।

अलखदेव प्रसाद ’अचल’
न्यूज इंप्रेशन
Bihar : ऐसा नहीं है कि बिहार या देश स्तर पर नीतीश कुमार पलटी मारने वाले पहले व्यक्ति हैं। फिर भी जिस प्रकार से नीतीश कुमार ने एक बार फिर जो पलटी मारी है, उससे यही लगता है कि राजनीति के क्षेत्र में नीतीश कुमार ने जो आज तक अपनी छवि बनायी थी, उसमें एक और धब्बा लगता हुआ जरूर दिखाई पड़ रहा है। वैसे राजनीति में तो सत्ता के लिए इस तरह का खेल चलते भी रहता है। इसीलिए शायद राजनीति को संभावनाओं का खेल भी कहा गया है। वैसे बिहार में नीतीश कुमार ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में जो बिहार के विकास का काम करवाया था। उसके आधार पर उन्हें विकास पुरुष भी कहा जाने लगा था। ऐसा भी नहीं रहा कि उनके मुख्यमंत्रित्व काल में भ्रष्टाचार नहीं रहा। भ्रष्टाचार तो चरमसीमा पार रहा था। जिसके कई प्रमाण भी उजागर हो चुके थे। फिर भी विकास में सब छिप सा गया था। यहां के नौकरशाह उनके मुख्यमंत्रित्व काल में पूरी तरह बेलगाम दिखते थे। योजनाओं में लूट मची रहती थी। नीतीश कुमार का नौकरशाहों पर कभी अंकुश नहीं रहा था। इसके बावजूद भी सड़क, पुल पुलिया, बिजली, स्कूल भवन आदि क्षेत्रों में विकास को खुली आंखों से देखा जा सकता है।

पलटी मारी सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए
नीतीश कुमार के साथ प्रमुख बात जो रही, वह यह कि जब से वे बिहार का मुख्यमंत्री बनने लगे थे, तब से मुख्यमंत्री की कुर्सी के मोह में इतना चिपक गए थे कि ऐसा लगने लगा था कि वे मुख्यमंत्री की कुर्सी के बिना रह ही नहीं सकते हैं। इसलिए, जब भी उन्होंने पलटी मारी तो सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए ही पलटी मारी। भले ही नीतीश कुमार अपने आप को समाजवादी विचार का नेता मानते हों, परंतु उनमें समाजवादी सिद्धांत कभी नहीं देखा गया। जदयू को बिहार की सवर्ण जातियां कभी अपनी पार्टी समझकर वोट नहीं की, फिर भी नीतीश कुमार वोट मिलने वाली जातियों की अपेक्षा उन्हें अधिक प्रश्रय दिया। अभी तक नीतीश कुमार अन्य नेताओं की तरह सिद्धांतहीन राजनीति ही करते रहें। उन्होंने बिहार में जो भी किया, भले वह जनहित में रहा, परन्तु उससे कहीं अधिक उसमें उनका राजनीतिक स्वार्थ रहा था।वह अपने सत्ता स्वार्थ के लिए ही किया था।चाहे उन्होंने पिछड़ों को पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों में बांटा। दलितों को दलित और महादलित में बांटा। पंचायत चुनाव में अतिपिछड़ों और महिलाओं को आरक्षण दिया। यह सब कुछ अपने वोट बैंक के लिए किया था। जैसा कि प्रायः हर सरकार करती है। अपने को पक्का समाजवादी कहने वाले नीतीश कुमार ने अगर बिहार में भाजपा जैसी साम्प्रदायिक पार्टी की जड़ जमवाने के लिए पहला जिम्मेवार व्यक्ति हैं, तो वह है नीतीश कुमार। यह सब कुछ भी उन्होंने सिर्फ मुख्यमंत्री बने रहने के लिए किया। जिसका खामियाजा अल्पसंख्यकों, दलितों और पिछड़ों को आज भी भुगतना पड़ रहा है और कल भी भुगतना पड़ेगा। अन्यथा बिहार में भाजपा को पैर जमाना नामुमकिन था।

जातियों को अधिक प्रश्रय दिया 
नीतीश कुमार इस मामले में थोड़ी स्वच्छ छवि के जरूर रहे कि परिवारवाद को प्रश्रय नहीं दिया और प्रत्यक्ष रूप से किसी घोटाले में खुद शामिल नहीं रहे, परंतु ऐसा भी नहीं इनके शासन काल में घोटाले हुए ही नहीं। वे जातिवादी रहे ही नहीं। नीतीश कुमार के हाथों में जब भी सत्ता रही, उसमें अपनी जातियों को अधिक प्रश्रय जरुर दिया। इन्हीं के शासनकाल में सीपी सिंह, जो कभी जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष तक रहे थे, कहा जाता है कि मैनेजमेंट का भार उनके ही हाथों में होता था। रुपए की अटैची उनके पास ही पहुंचती थी। ऊंचे ऊंचे पदों पर भी अपनी जातियों को बैठाने में नीतीश कुमार पीछे नहीं रहे थे।
नीतीश ने स्वार्थ में एक झटके में इंडिया गठबंधन को छोड़ दिया
फिर भी अन्य नेताओं की अपेक्षा नीतीश कुमार अपनी छवि को बनाए रखे थे। यही कारण था कि जब उन्होंने इंडिया गठबंधन के लिए पहल की थी, तो जिन-जिन से गठबंधन में शामिल होने के लिए संपर्क किया था, सभी राजी हो गए थे। परंतु वहां भी उन्होंने मन में प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब पाल रखा था कि अगली बार लोग खुले तौर पर ऐलान कर देंगे कि इंडिया गठबंधन का चुनाव नीतीश कुमार के ही नेतृत्व में लड़ा जाएगा और अगर इंडिया गठबंधन सत्ता में आया, तो इसके प्रधानमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे। जब बैठकों की बात आगे बढ़ती चली गई और इंडिया गठबंधन का अध्यक्ष खड़गे साहब को बना दिया गया। नीतीश कुमार को जब यह लगने लगा कि लोग हमारे नाम की घोषणा नहीं कर रहे हैं, तो इंडिया गठबंधन से धीरे-धीरे अपने को अलग करने लगे थे। ज्ञात हो कि जिस इंडिया गठबंधन को नीतीश कुमार ने खड़ा किया, उसे ही अपने स्वार्थ में एक झटके में उन्होंने छोड़ दिया। इससे बड़ा दोष और क्या हो सकता है? वैसे नेता को कैसे विश्वसनीय कहा जा सकता है? वैसे नेता को कैसे जननायक कर्पूरी ठाकुर का अनुयाई कहा जा सकता है? जिस नीतीश कुमार ने यह कहा था कि मैं मर जाउंगा पर भाजपा के साथ कभी गठबंधन नहीं करुंगा। उसके साथ गठबंधन करना हमारी सबसे बड़ी भूल थी।वही नीतीश कुमार एक झटके में पलटी मारकर भाजपा के साथ सरकार बना ली।

सवर्ण जदयू नेता भाजपा से भीतर-भीतर थे संपर्क में
सूत्र यह भी बताते हैं कि पिछली बार जब भाजपा से अलग होकर नीतीश कुमार राजद के साथ सरकार बनाई थी, उस समय ही उनकी पार्टी के दवंग सवर्ण नेता यह नहीं चाहते थे कि राजद के साथ सरकार चलाई जाए। जबकि जदयू के ही पिछड़े और दलित जातियों को इससे कोई एतराज नहीं था। यह भी कहा जाता है कि कई सवर्ण जदयू नेता भाजपा से भीतर-भीतर संपर्क में थे। जो समय- समय पर नीतीश जी के कान फूंकते आ रहे थे कि राजद के साथ चुनाव लड़ने पर हम लोगों को नुकसान होना तय है। उसके लिए भाजपा ही सही रहेगी। क्योंकि राम मंदिर को लेकर जनता का झुकाव उसकी तरफ देखा जा रहा है।अब सवाल उठता है कि अगर कुछ सवर्ण नेता ऐसी सलाह दे रहे थे, तो मुख्य मंत्री जैसा आदमी को अपना दिमाग भी था या नहीं? क्या नीतीश कुमार राजनीति के कच्चे खिलाड़ी थे?
ईडी के भय से गये भाजपा में
कुछ सूत्र तो यह भी बताते हैं कि नीतीश कुमार के कुछ मंत्री ईडी और सीबीआई के रडार पर थे, जिसके लपेटे में नीतीश कुमार को भी आना तय था। जब भाजपा ने देख लिया कि अगला लोकसभा चुनाव नीतीश कुमार राजद गठबंधन के साथ ही लड़ेंगे। ऐसी स्थिति में हमलोगों को बिहार में नुकसान होना तय है, तो भाजपा के ऊपर नेतृत्व से भी यह मैसेज भिजवाया गया। जिसके डर से नीतीश कुमार पुनः भाजपा के साथ जाने के लिए विवश हो गए। इस संदर्भ में नीतीश कुमार जी के करीबी लोगों तक का कहना है कि अगर ऐसा था, तो नीतीश कुमार ने भाजपा छोड़ी ही क्यों थी? राजद गठबंधन के साथ आने की जरूरत ही क्या थी? अगर वहीं रह जाते तो उनके दामन में इस तरह का दाग तो नहीं लगता। नीतीश जी ने जो किया। यह ठीक है कि बिहार मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश कुमार के पास है। परंतु आम लोगों से लेकर अच्छे-अच्छे लोगों के बीच यह मैसेज तो चला ही गया है कि सचमुच में नीतीश कुमार पलटी मार नेता हैं। वे मुख्यमंत्री की कुर्सी की सलामती के लिए किसी भी सिद्धांत को बलि दे सकते हैं। पहले उनकी जो स्वच्छ छवि रही थी और जिस स्वच्छ छवि पर उनको वोट मिलते रहे थे। इन्होंने जानबूझकर अपने दामन पर पुनः धब्बा लगा लिया है। निश्चित रूप से आने वाले चुनाव में इनके वोट प्रतिशत में कमी आना तय है।

One thought on “Nitish Politics: नीतीश के दामन पर एक और धब्बा

  1. बेहतरीन रिपोर्ट। पुरा का पूरा कच्चा चिट्ठा खोल के रख दिया है आपने।

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