Bharat Ratna Karpoori Thakur: कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न के बहाने, भाजपा इसे लोकसभा चुनाव में भुनाएगी

Bharat Ratna Karpoori Thakur: भाजपा सरकार ने अगर कर्पूरी बाबू को ’भारत रत्न’ का सम्मान दिया है, तो सिर्फ और सिर्फ अपने वोट बैंक के लिए, ताकि अति पिछड़ी जाति के लोगों में यह संदेश जाए कि आज तक कांग्रेस ने कर्पूरी जी को ’भारत रत्न’ का सम्मान नहीं दे सका था।

अलखदेव प्रसाद ’अचल’
न्यूज इंप्रेशन

Bihar: बिहार में समस्तीपुर जिले के पितौनझिया गांव में जन्मे कर्पूरी ठाकुर, जिन्हें गुदड़ी का लाल कहा जाता है। उन्हें अगर भारत सरकार की ओर से भारत रत्न दिया गया, तो हम जैसे बहुसंख्यकों को खुशी होना स्वाभाविक है। क्योंकि जननायक ने जो अपने जीवन काल में जो ऐतिहासिक कार्य किया था, उसके अनुसार जननायक कर्पूरी ठाकुर ’भारत रत्न’ ( Bharat Ratna Karpoori Thakur) सम्मान के योग्य तो थे ही।
कर्पूरी ठाकुर जी का जन्म एक गरीब नाई परिवार में जन्म हुआ था। जिनके पास खाने-पीने से लेकर पढ़ने लिखने तक की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी। फिर भी संघर्ष के बदौलत वे इस मुकाम तक पहुंचे थे। उस दौरान उन्हें कितना जातीय दंश झेलना पड़ा होगा, इसका स्वतः अंदाजा लगाया जा सकता है। फिर भी वह शख्स कभी मुड़ा नहीं था। जहां क्षेत्र में उनकी जातियों की संख्या नगण्य थी। इसके बावजूद आजादी के बाद से जब से अर्थात 1952 से विधानसभा का चुनाव होने लगा था, तब से लेकर जीवन के अंतिम पड़ाव तक वे कभी हारे नहीं थे,बल्कि जीत ही दर्ज करते रहे थे। जो साबित करता है कि निश्चित रूप से कर्पूरी ठाकुर जी जन-जन के नायक थे। वे अपने परिवार नहीं, बल्कि आम जनता के लिए थे। वे आम जनता की समस्याओं के लिए सोचते थे, विचारते थे और विधानसभा में आवाज उठाते थे। यही कारण था कि क्षेत्र की जनता ने भी उन्हें अपना समझ बैठा था। फिर थोड़े ही दिनों के लिए सही,पर जब मुख्यमंत्री के रुप में रहकर कार्य किया था, तो पूरे बिहार के बहुसंख्यकों ने उन्हें अपना समझ बैठा था।

सोशलिस्ट पार्टी में रहकर जीतते रहे चुनाव जीतते
सबसे खास बात तो यह थी कि उस समय पूरे देश में कांग्रेस का बोलबाला था। केंद्र से लेकर अधिकांश राज्यों में कांग्रेस की ही सरकार हुआ करती थी। जैसे आज पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी दबदबा बनाए हुए है, उसी तरह उस समय कांग्रेस का दबदबा था। परंतु जननायक कर्पूरी ठाकुर कभी कांग्रेस पार्टी में नहीं रहे। उससे अलग वे हमेशा सोशलिस्ट पार्टी में रहे और सोशलिस्ट पार्टी में रहकर चुनाव जीतते रहे। यह कम बड़ी बात नहीं थी। वे उसी दौरान दो-दो बार बिहार के मुख्यमंत्री भी बने। उस समय भी वे सोशलिस्ट पार्टी में ही रहकर बने। कर्पूरी बाबू मुख्यमंत्री भले ही पूरा कार्यकाल तक नहीं रह सके, परंतु जितने समय रहे, उतने समय में बहुसंख्यकों के हित में जो कर दिया था, वह ऐतिहासिक था। वह वही समय था, जब लोकसभा या विधानसभा में सवर्ण सांसदों या विधायकों की संख्या काफी होती थी। कोई भी निर्णय लेना काफी कठिन होता था। उस समय कर्पूरी ठाकुर जी ने पिछड़ों के लिए आरक्षण लागू किया था। जबकि ऐसा कदम उठाने पर बिहार के सवर्ण न सिर्फ विरोध में सड़कों पर उतरे थे, अपितु उन्हें भद्दी-भद्दी गलियां तक दी थीं। जिसे यहां उद्धृत करना मैं उचित नहीं समझता। इसको लेकर कर्पूरी ठाकुर जी सवर्णों की आंखों में कांटों की तरह चुभने लगे थे। लेकिन कर्पूरी ठाकुर जी ने इसकी तनिक भी परवाह नहीं की थी। कर्पूरी ठाकुर जी थे, जिन्होंने समझ लिया था कि चूंकि यहां के सरकारी विद्यालयों में अंग्रेजी की पढ़ाई की शुरुआत ही छठी कक्षा से होती है। इसलिए मैट्रिक तक जाते-जाते दलितों और पिछड़ों के विद्यार्थियों की अंग्रेजी कमजोर ही रह जाती है। फलस्वरूप अंग्रेजी विषय की वजह से उन्हें मैट्रिक की परीक्षा में असफलता का मुंह देखना पड़ता है। सवर्ण जाति के बच्चे तो साधन सम्पन्न होते हैं। इसलिए अतिरिक्त ट्यूशन कर अंग्रेजी पढ़ लेते हैं। मैट्रिक की परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाते हैं। इसलिए नौकरियों में भी वे लोग भरे-पड़े मिलते हैं। जबकि दलितों और पिछड़ों के अधिकांश बच्चे मैट्रिक की परीक्षा में अंग्रेजी विषय में ही फेल कर जाते हैं। ऐसी स्थिति में न चाहकर भी नौकरी में जाने से वंचित हो जाते हैं। फलस्वरुप उनका जीवन बर्बाद हो जाता है। तब उन्होंने मुख्यमंत्री रहते यह नियम बनवाया कि मैट्रिक की बोर्ड परीक्षा में जो विद्यार्थी अंग्रेजी विषय में फेल भी रहेंगे, उन्हें पास माना जाएगा। तब से पिछड़े और दलित जाति के बच्चे-बच्चियां उत्तरोत्तर मैट्रिक पास करते रहे और नौकरियों में जाते रहे। जबकि इसका लाभ सभी वर्ग के विद्यार्थियों को मिला। ऐसी सोच कर्पूरी ठाकुर जी ही रख सकते थे। इसलिए वे ’भारत रत्न’जैसे सम्मान के अधिकारी तो हैं ही। परंतु यहां तो कांग्रेस से लेकर भाजपा की सरकार तक ’भारत रत्न’ जैसा सम्मान कुछ खास लोगों को ही देती रही।पिछड़ों और दलित महापुरूषों को मिला भी तो उनकी जातियों व वर्गों को लुभाने के लिए मिला।
भाजपा चुनाव में इस उपलब्बिध को भुनाएगी
प्रसन्नता है कि जननायक कर्पूरी बाबू को सरकार ने ’भारत रत्न’ जैसा सम्मान देने की घोषणा की। परंतु ऐसा नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने जननायक कर्पूरी ठाकुर जी की विचारधारा की वजह से यह सम्मान दिया। कर्पूरी जी की सामाजिक और राजनीतिक उपलब्धियां के लिए दिया। नहीं, भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने अगर कर्पूरी ठाकुर जी को ’भारत रत्न’ का सम्मान दिया है, तो सिर्फ और सिर्फ अपने वोट बैंक के लिए दिया है। ताकि अति पिछड़ी जाति के लोगों में यह संदेश जाए कि आज तक कांग्रेस ने कर्पूरी ठाकुर जी को ’भारत रत्न’ का सम्मान नहीं दे सका था, भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने दे दिया। भारतीय जनता पार्टी इसे आने वाले चुनाव में जी भर भुनाएगी। अति पिछड़ी जातियों के वोट को प्रभावित करेगी। अन्यथा भारतीय जनता पार्टी को अति पिछड़ों, पिछड़ों या दलितों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। भाजपा इन जातियों के साथ उसी तरह बदसलूकी करती रहेगी, जैसे 2014 से करती आ रही है। भाजपा तो सिर्फ इन वर्गों के वोटो को एन-केन-प्रकारेण भुनाना चाहती है। अगर भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने कर्पूरी बाबू को ’भारत रत्न’ के सम्मान की घोषणा की है, तो सिर्फ इसलिए कि अति पिछड़ी जातियों का झुकाव हमारी तरफ हो और आने वाले 2024 के लोकसभा चुनाव में इसका लाभ मिले।

सम्मान से अति पिछड़ी जातियों को किया जा सकता प्रभावित

चूंकि अगले लोकसभा चुनाव जीतने और सरकार बनाने के लिए भाजपा को बिहार में अधिक सीटें जीतनी पड़ेगी, जो नीतीश कुमार को भाजपा से अलग होने के बाद कहीं से भी दिख नहीं रहा है। भाजपा यह समझ रही है कि चिराग पासवान, उपेन्द्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी के सहयोग से बिहार में अच्छा प्रदर्शन करना संभव नहीं है। बिहार में फिलहाल अतिपिछड़ों पर अगर पकड़ है, तो नीतीश कुमार की ही पकड़ है। ऐसी स्थिति में कर्पूरी ठाकुर को ’भारत रत्न’ देकर ही अति पिछड़ी जातियों को प्रभावित किया जा सकता है। अन्यथा 2014 से भाजपा की सरकार है, फिर 2024 में कर्पूरी ठाकुर जी क्यों याद आए,यह समझने वाली बात है। यह भी संभव है कि भाजपा कर्पूरी ठाकुर को ’भारत रत्न’ देकर उनके लड़के पर भी डोरे डाल सकती है। इस सम्मान को समझने के लिए पीछे मुड़कर देखना होगा, जिन्हें यह लगता है भाजपा ने कर्पूरी ठाकुर जी को सम्मान देकर अति पिछड़ी जातियों को सम्मान दे दिया। भारतीय जनता पार्टी ने रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाया था। ताकि दलितों को यह लगे कि हमारे वर्ग के नेता को भाजपा ने राष्ट्रपति बना दिया। भाजपा को उसका लाभ मिला भी था।पर क्या रामनाथ कोविंद को अपने पावर का सदुपयोग करने का अधिकार भी था क्या ? नहीं।वे सिर्फ रबर स्टैंप भर ही थे।उसके बाद आदिवासी द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बना दिया। लेकिन द्रोपदी मुर्मू को सरकार की नीतियों के खिलाफत करने की हिम्मत है क्या? आदिवासियों पर जुल्म हो रहे हैं। उन्हें जल, जंगल, जमीन से बेदखल किया जा रहा है। द्रौपदी मुर्मू विरोध करने की हिम्मत जुटाएगी क्या? अभी मध्यप्रदेश में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना दिया,पर मोहन यादव को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार है क्या? भले ही मोहन यादव को सम्मान मिल गया। थोड़ी देर के लिए उस जाति के लोग भी गौरवान्वित महसूस कर सकते हैं। भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने उन्हें सम्मान तो दे दिया, परंतु उससे दलितों को क्या मिला था ? आदिवासियों को क्या मिल रहा है ? यादव जातियों को क्या मिल जाएगा? हां, उसके एवज में भारतीय जनता पार्टी को जरूर मिल रहा है। उन दोनों को तो राष्ट्रपति के पद को सुशोभित करते हुए भी अपमानित किया गया। वे अपनी जातियों व वर्गों को अपमान से कहां तक बचा पायेंगे?

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