Bihar: अयोध्या का कार्यक्रम राजनीति से प्रेरित, 2024 लोकसभा चुनाव जीतने के लिए सुनियोजित षड्यंत्र

Bihar: भारतीय जनता पार्टी द्वारा प्रायोजित 2024 की लोकसभा चुनाव को जीतने के लिए एक सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा था। अन्यथा जहां मंदिर अधूरा ही बन पाया है। अगर राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का था, तो प्राण प्रतिष्ठा की मुख्य भूमिका में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी क्यों थे?

अलखदेव प्रसाद ’अचल’
न्यूज इंप्रेशन

Bihar : गत 22 जनवरी को अयोध्या में राममंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को हम राजनीति से प्रेरित कहें, तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। यह भारतीय जनता पार्टी द्वारा प्रायोजित 2024 की लोकसभा चुनाव को जीतने के लिए एक सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा था। अन्यथा जहां मंदिर अधूरा ही बन पाया है। हिन्दू धर्म के अनुसार पूस को खरवास का महीना माना जाता रहा है। जिसमें शुभ कार्य निषेध माना जाता रहा है। आखिर भारतीय जनता पार्टी को कौन सी हड़बड़ी दिखाई दी कि आनन-फानन में 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम रखा था। यही न कि माथे पर 2024 का चुनाव है। राम को राजनीति में घसीटकर आसानी से चुनाव जीता जा सकता है? इस पर भाजपाई यह कह सकते हैं कि यह आयोजन तो भाजपा का कहां था? यह तो राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का कार्यक्रम था। अगर राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का था, तो प्राण प्रतिष्ठा की मुख्य भूमिका में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी क्यों थे? देश में प्राण प्रतिष्ठा करने करवाने वाले महात्माओं की कमी हो गयी क्या? अगर राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की ओर से था, तो फिर चारों शंकराचार्यों को इस कार्यक्रम का बहिष्कार करने की जरूरत क्यों पड़ी? सभी शंकराचार्य सहित कई पहुंचे हुए महात्माओं ने इस तिथि को लेकर, अधूरे मंदिर को लेकर तीखी आलोचनाएं क्यों की। प्राण प्रतिष्ठा के लिए भाजपाइयों को किसलिए बेचैनी थी?

महात्माओं की अनुपस्थिति क्यों दिखी ?
जिस मंदिर के निर्माण करने के लिए बाबरी मस्जिद ध्वंस करवाने में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार सहित कई नेताओं और महात्माओं की अनुपस्थिति क्यों दिखी? खुद अयोध्या के ही कई महंतों को क्यों नहीं पूछा गया था? क्या इसके पीछे राजनीति नहीं दिखती? भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के बाद सत्ता में रहने के बावजूद जो किया है, वह किसी से छिपा हुआ नहीं है। वे लोग भी समझते हैं कि हमने जनता के विकास के लिए कहां तक काम किया है। सिर्फ फेंकने रहने से जनता समस्याओं से थोड़े ही निजात पा गयी? उनलोग यह भी जानते हैं कि जिस तरह से हमलोगों ने लोगों को बरगलाया है, उसे आम जनता भी भली-भांति समझ रही है। आम जनता के बीच आक्रोश भी है। ऐसी स्थिति में फिर 2024 का चुनाव फंसना तय है। 2024 का चुनाव फंसने के कारणों में एक कारण यह भी भय सता रहा है कि ऐसा न हो कि इंडिया गठबंधन सफल हो जाए। अगर इंडिया गठबंधन सफल हो गया, तो सत्ता से बेदखल होना तय है। फिर विपक्ष में जाने के बाद सारी कारगुजारियां सामने आ जाएगी। फिर जिस ईडी और सीबीआई को विपक्षी नेताओं के यहां भेज रहे हैं, वह हमलोगों के यहां आने लगेगी, तब क्या होगा? इसलिए भाजपा किसी भी कीमत पर 2024 का चुनाव जीतना चाहती है। इसीलिए भाजपा इस बार चुनाव में श्री राम को भुनाना चाहती है। जल्दबाजी में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम उसी राजनीति का एक हिस्सा है।

बिना एकजुटता के भाजपा को मात देना संभव नहीं
2019 में भारतीय जनता पार्टी ने सरकार भले ही बना ली थी, परंतु अगर वोटो के प्रतिशत की बात करें, तो उसे मात्र 37 प्रतिशत ही वोट आए थे। इसका अर्थ यह हुआ की 63 प्रतिशत वोट उसके विपक्ष में पड़े थे। परंतु उस समय विपक्ष में मतभिन्नता की वजह से वोट बिखर गए थे। फलस्वरुप भाजपा की सरकार आसानी से बन गई थी। विपक्षी पार्टी के लोग भी समझते हैं भाजपा सरकार में सिर्फ इसलिए है कि हमलोगों में काफी बिखराव है। बिना एकजुटता के भाजपा को मात देना संभव नहीं है। इंडिया गठबंधन इसी सोच का नतीजा है। इसमें कितनी कामयाबी मिलेगी,यह तो आनेवाला वक्त ही बताएगा। भारतीय जनता पार्टी के मास्टर माइंड यह भली भांति समझते हैं कि अगर इंडिया गठबंधन एकजुट हो जाता है तो ऐसी स्थिति में 2024 के लोकसभा चुनाव में हार का मुंह देखना तय है। क्योंकि आम जनता का भारतीय जनता पार्टी की सरकार पर से विश्वास उठ गया है। आम जनता हमारा चाल-चरित्र समझ चुकी है।आम जनता यह भी भली-भांति समझती है कि सिर्फ फेंकने से कभी भला होने वाला नहीं है। जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार 2014 में बनी थी। पांच वर्षों में एक भी वादा पूरा नहीं कर सकी थी। उसे लगने लगा था कि 2019 के लोकसभा का चुनाव काफी मुश्किल है, तो एक चाल चली गयी थी। भारतीय जनता पार्टी के मास्टरमाइंड 2019 के लोकसभा चुनाव जीतने के लिए नुस्खा अपना कर देख चुके हैं। जिसमें उन्होंने एक साजिश के तहत पुलवामा की घटना का अंजाम दिलवा और बालाकोट में एयर स्ट्राइक का नाटक कर 2019 के लोकसभा चुनाव जीत चुके थे। वे जान चुके हैं कि यहां की जनता हमारे द्वारा फेंकी जाने वाली बातों पर आसानी से विश्वास कर लेती है। इसलिए इस बार भी कोई ऐसा नुस्खा अपनाया जाए, जिससे यहां की जनता सारी समस्याओं को भूल जाए और फिर भाजपा को वोट देने के लिए विवश हो जाए। जिस प्रकार से 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राष्ट्रवाद का नारा देकर चुनाव जीत चुकी थी। उसी प्रकार से इस बार हिंदुत्व और जय श्री राम का नारा देकर चुनाव जीत जाना चाहती है। 2024 के लोकसभा चुनाव जीतने के लिए ही आनन-फानन में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम रखा गया था। भाजपा यह भली-भांति समझती है की भोली-भाली जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए धर्म का इस्तेमाल बहुत जरूरी है।“ जिस पर धर्म का नशा सवार हो जाता है, वह फिर कुछ नहीं सोच पाता है“ इसलिए धर्म की घुट्टी ही 2024 के चुनाव के लिए कारगर साबित हो सकती है। अयोध्या में राम की प्राण प्रतिष्ठा इस साजिश का एक हिस्सा है।

भाजपा में सेकंड लीडर माने जाने वाले गृह मंत्री नहीं दिखे?
यह सभी ने देखा कि राम की प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में आमंत्रण पर गुजरात से अंबानी परिवार के लोग आए, मुंबई से अभिनेता अभिताभ बच्चन और रजनी कान्त आए, अभिनेत्री कंगना रनौत आयी। क्रिकेट खिलाड़ी रहे सचिन तेंदुलकर आए, बड़े बड़े अन्य उद्योगपति आए, भाजपा के समर्थक आए। उन सभी को बुलाया गया, जिनसे 2024 के लोकसभा चुनाव लाभ मिलने की उम्मीद थी। परंतु, आमंत्रण मिलने के बावजूद चारों मठों के शंकराचार्य नहीं आए। महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू नहीं आई, क्यों? भाजपा को ऊंचाई तक पहुंचने में जिस वयोवृद्धि नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी का अहम् योगदान रहा था। उनको आमंत्रण तो मिला, परंतु उन्हें अयोध्या आने से मना कर दिया गया। इसलिए कि वहां तो सिर्फ एक ही चेहरा चमकना चाहिए था। फिर इनलोग आ जाते, तो उनलोगों के चेहरे को भी तो दिखाना मजबूरी हो जाती। क्या धार्मिक अनुष्ठान में ऐसा होता है? परन्तु वहां तो सबकुछ एक राजनीति के तहत हो रहा था। नहीं, तो फिर क्यों? जहां दिल्ली से सारे मंत्री अयोध्या कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए उतर पड़े थे, वहां भाजपा में सेकंड लीडर माने जाने वाले गृह मंत्री अमित शाह नहीं दिखे ? रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह नहीं दिखे ? पथ परिवहन मंत्री नितिन गडकरी नहीं दिखे। और तो और, खुद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा साहब नहीं दिखे। ऐसे महत्वपूर्ण समय में उन्हें कहां ड्यूटी पर लगा दिया गया था?आखिर, इन महानुभावों को कौन बता दिया था कि यहां आप लोगों को आने की जरूरत नहीं है ? आखिर उनलोग आ जाते, तो कैमरा मैन को उनका भी तो कभी कभार चेहरा दिखलाना पड़ता।यह कैसे संभव था? उन्हें तो यह भी संदेश देना था कि राम की प्राण प्रतिष्ठा के बहाने राम को 2024 के लोकसभा चुनाव में भुनाने के लिए हम अकेला ही काफी हैं। भाजपा के सारे-के-सारे नेता यह जानते हैं कि जितना हमारे मास्टरमाइंड फेंक सकते हैं, उतना हम लोगों से नहीं बन सकेगा और अगर भाजपा की नैया पार लगा सकते हैं तो सिर्फ वही लगा सकते हैं। शायद यही कारण है कि मास्टरमाइंड के मनमाने के बाद भी किसी नेताओं को न उस पर सवाल उठाने की हिम्मत है और न विरोध करने की हिम्मत। यह कहा जा सकता है कि यहां भी राजनीति में राजनीति है।

राजनीति न होती तो प्रधानमंत्री होकर यजमान की भूमिका नहीं निभाते

अयोध्या के उक्त कार्यक्रम में आने के लिए विपक्षी पार्टी के कुछ प्रमुख नेताओं को भी आमंत्रण दिया गया था, जिसे सभी ने इनकार कर दिया था। इसपर किसी महात्मा ने आपत्ति नहीं जताई। अगर आपत्ति जताई, तो भाजपा के नेताओं ने। आखिर क्यों? सच तो यह है कि राम की प्राण प्रतिष्ठा समारोह के अवसर पर विपक्ष के नेता चले जाते, फिर भी भाजपा राजनीति करती और न गए इसके बाद भी राजनीतिक करेगी। उक्त समारोह में विपक्ष के नेता चले जाते, तो भाजपा को यह लगता कि उनसे मुस्लिम वोट निश्चित रूप से खिसकेगा। अगर नहीं गए, तो भी बीजेपी यह दुष्परचार करेगी कि विपक्ष भगवान राम के विरोधी हैं, इसलिए इस कार्यक्रम में नहीं आ सके। ताकि हिंदुओं का वोट इन लोगों के पाले से भाजपा के पाले में आ जाए और वह वोट हमारे फायदे का हो जाए। यह भी एक राजनीति ही है। अगर राम की प्राण प्रतिष्ठा में राजनीति न होती, तो मोदी जी प्रधानमंत्री होकर मुख्य यजमान की भूमिका नहीं निभाते। हिंदुओं के वोट को एकीकृत करने के लिए 10 दिन पहले से मंदिर-मंदिर घूमते नहीं चलते। राजकाज छोड़कर अयोध्या में डेरा डाले नहीं रहते और अपना चेहरा नहीं चमकाते।यह किसी भी देश के प्रधानमंत्री का काम नहीं है। परन्तु यहां तो, उन्हें राम की आड़ में राजनीति करनी है। राम की प्राण प्रतिष्ठा में जो लोगों को उम्मीद थी, आखिर वही हुआ भी। भले इस चाल को जन सामान्य लोग न समझ सकें। राम की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो भाषण दिया, वह पूरी तरह से राजनीति से ओतप्रोत रहा और उनके भाषण ने यह साबित कर दिया कि राम को भुनाने के लिए ही उन्होंने 22 जनवरी 2024 को जल्दबाजी में यह कार्यक्रम रखा था। ताकि देश के बहुसंख्यक हिन्दू भाजपा के समर्थन में गोलबंद हो सकें। और तो और, एक अयोध्या के आयोजन के लिए सरकार की ओर से पूरे देश के सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों को बंद करवा दिया गया। कहीं ऐसा भी होता है क्या? ताकि सभी लोगों सिर्फ अयोध्या के कार्यक्रम पर अपने को केन्द्रित रख सकें। क्या इसमें राजनीति नहीं लगती? सबसे हास्यास्पद तो यह देखा गया कि एक तरफ मोदी जी अयोध्या से प्रभु श्रीराम के आदर्श का पाठ पढ़ा रहे थे और दूसरी तरफ उनके के ही अनुयाई देशभर में हुड़दंग मचाने में लगे थे। कहीं चर्चों तो कहीं मस्जिदों पर चढ़कर भगवा झंडे लहरा रहे थे। गैर हिन्दुओं को उकसाने वाले नारे लगा रहे थे। उन्हें यह सब कहां से ऊर्जा मिल रही थी? उन्हें कहां से ऐसा करने के लिए कहा गया था? हर बुद्धिजीवी इस राजनीति को समझ रहा है कि आम लोगों को धर्म की घुट्टी किस मकसद से पिलाई जा रही है। ऐसी स्थिति में हर बुद्धिजीवी का यह कर्तव्य है कि इसका पर्दाफाश करें और लोगों को सतर्क करें।

5 thoughts on “Bihar: अयोध्या का कार्यक्रम राजनीति से प्रेरित, 2024 लोकसभा चुनाव जीतने के लिए सुनियोजित षड्यंत्र

  1. बहुत ही सटिक विश्लेषण । धर्म के कंधे पर सवार होकर राजनीति करने की यह कोशिश कितनी सफल होगी यह तो वक्त बताएगा। किंतु, अपने कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा और नया जोश भरने में वे सफल रहे हैं।

  2. बेहतरीन आर्टिकल।यही सच है।

  3. यह आलेख निसंदेह यथार्थ पर आधारित है। राम लाल की प्राण प्रतिष्ठा किसी भी दृष्टिकोण से न्याय संगत नहीं लगता है। सारा खेल लोकसभा चुनाव के परिपेक्ष में ही खेला गया लगता है। विगत लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली वोट की प्रतिशतता को देखते हुए महा गठबंधन की सफलता पर संदेह नहीं किया जा सकता।

  4. बहुत सटीक विश्लेषण अलखदेव प्रसाद अचल जी का है। मैं इनकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं।

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