Savitribai Phule Jayanti 2024: एपवा ने मनाई भारत की प्रथम महिला शिक्षिका व समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले की मनाई 193वीं जयंती, सावित्रीबाई फुले ने जगाई शिक्षा की अलख।
न्यूज इंप्रेशन, संवाददाता Ramgarh : अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) रामगढ़ की ओर से समाज सुधारक, शिक्षिका व कवयित्री सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule Jayanti 2024) की जयंति मनाई गयी। महिलाओं ने उनके चित्र पर माल्यार्पण व पुष्पाजंलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। लड़कियों व महिलाओं के प्रति शिक्षा का अलख जगाने वाली सावित्रीबाई फुले अमर रहे के नारे लगाएं। देश की प्रथम महिला शिक्षका, नारी मुक्ति के प्रणेता महान समाज सेविका, क्रांति की ज्योत जलाने वाला सावित्रीबाई फुले को कोटी- कोटी नमन किया।
आधुनिकता की अलख जगाई नीता बेदिया द्वारा सावित्रीबाई फुले की जीवनी का पाठ किया गया। देश में महिला शिक्षा और आधुनिकता की अलख जगाने वाली सावित्री बाई फुले की आज जयंती है। 3 जनवरी 1831 को पुणे से 50 किलोमीटर दूर नईगांव में उनका जन्म हुआ था। 9 वर्ष की उम्र में 12 वर्षीय ज्योतिराव फुले से उनका विवाह कर दिया गया। शिक्षा के प्रति सीखने की सावित्री बाई की लगन देख कर उनके पति ज्योति राव फुले ने उन्हें पढ़ाना शुरू किया। खुद पढ़ते हुए सावित्री बाई को शिक्षा का महत्व भी समझ में आया और 1847 में उन्होंने लड़कियों के लिए स्कूल का निर्माण कर पढ़ाना शुरू किया। शुरू में 8-9 लड़कियां ही उनके स्कूल में आई पर साल भर होते-होते यह संख्या बढ़ कर 40-45 हो गयी। हालांकि लड़कियों को शिक्षा की यह मुहिम आसान नहीं थी। सावित्रीबाई द्वारा धर्म की निर्धारित चौहदी के बाहर शिक्षा को ले जाने की कोशिशों को धर्म के विरुद्ध और धर्म के लिए खतरा करार दिया।
सावित्रीबाई का प्रचंड विरोध नतीजा सावित्री बाई का प्रचंड विरोध हुआ। वे स्कूल जाती तो रास्ते में उन पर पत्थर, गोबर आदि गंदगी फेंकी जाती। लड़कियों और दबे कुचलों को शिक्षा देने की फुले दंपति की कोशिशों के विरोध ने ज्योतिबा के पिता को तक भयभीत कर दिया। फलतः दोनों पति-पत्नी को 1849 में घर से निकाल दिया गया। लेकिन इतने विरोध के बावजूद शिक्षा को लेकर इस दंपति के कदम डगमगाये नहीं। महिला शिक्षा और समाज में उपेक्षित, वंचित तबकों के लिए जीवन पर्यंत प्रतिबद्ध रहने वाली सावित्रीबाई फुले की मृत्यु भी समाज सेवा करते हुए 1897 में प्लेग के मरीजों की सेवा करते हुए। वे स्वयं भी प्लेग की चपेट में आ गयी और 10 मार्च 1897 को इस दुनिया से रुखसत हो गयी।
लड़ाई तेज करने का लिया संकल्प भारत में पहली महिला शिक्षक और पहली महिला प्रधान अध्यापक तथा महिलाओं, वंचित उपेक्षितों के लिए आजीवन संघर्षरत रही। आज के दौर में महिलाओं पर घरेलू हिसा,अत्याचार, रेप छेड़खानी तेजी से बढ़ रही है। महिलाओं को आज भी समाज और सरकार ने अधिकारों से वंचित किया है। शैक्षणिक, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक बराबरी के लिए सावित्रीबाई फुले से प्रेरणा लेते हुए लड़ाई तेज करने का संकल्प लेना चाहिए।
ये थे मौजूद जंयति में जिला सचिव नीता बेदिया, उपाध्यक्ष कांति देवी, झूमा घोषाल, पंचमी देवी, भावना देवी, मंजू देवी, मीला देवी,मगनी देवी, चरकी देवी, संजोती देवी, शांति देवी, पुरनी देवी,सतिया देवी, रिझनी देवी, उपासी देवी सहित अन्य महिलाएं शामिल थी।