Bokaro Cultural Program: कुड़माली लोक गायक गोविंदलाल हंस्तुआर के झूमर गीतों पर रातभर झूमे लोग

Bokaro Cultural Program: बोकारो जिले के कसमार प्रखंड के मंजूरा गांव में सरहुल परब के अवसर रंगारंग कुड़माली सांस्कृतिक का कार्यक्रम आयोजन। नेगाचारी गुरु संतोष ने कहा कुड़मी जनजाति की भाषा, संस्कृति, परंपरा अलग है।

 

अशोक महतो 

न्यूज इंप्रेशन, संवाददाता 

Bokaro : बोकारो जिले के कसमार प्रखंड के मंजूरा गांव में बुधवार को सरहुल परब के अवसर पर आदिवासी कुड़मी समाज मंजूरा के द्वारा रात्रि को रंगारंग कुड़माली झूमर एवं नाच का आयोजन किया गया। जिसमें पश्चिम बंगाल के सुप्रसिद्ध कुड़माली लोकगीत गायक गोविंद लाल हंस्तुआर, अंबा महतो एवं रीता महतो के द्वारा एक से बढ़कर एक कुड़माली झूमर एवं अन्य गीत की प्रस्तुति की गई।  

कुड़मी जाति नहीं विशुद्ध रूप से जनजाति

कार्यक्रम की शुरुआत अखाड़ा वंदना के साथ की गई। इसके बाद एक जिससे रात भर लोग झूम झूमकर आंनद लेते रहे। इस अवसर पर मुख्य रूप से पहुंचे कुडमाली नेगाचारी गुरु संतोष कटियार ने कहा कि कुड़मी जाति नहीं विशुद्ध रूप से जनजाति है। जिसकी अपनी विशिष्ट भाषा, संस्कृति, परब-त्यौहार, देवाभूता हैं। जन्म, बिहा एवं मृत्यु संस्कार के अपने नेग-नियम है। जो किसी हिंदू वैदिक संस्कृति से पूर्णतया भिन्न है। अपनी विशिष्ट संस्कृति को पुनर्जीवित करने की जरूरत है। तभी कुड़मी जनजाति की पहचान सुरक्षित रहेगा। 

जनजाति सूची में शामिल करने के लिए संघर्ष जरूरी

कड़मी जनजाति के शोधकर्ता दीपक कुमार पुनरिनयार ने कहा कि सरकारी दस्तावेज एवं हमारी विशिष्ट जनजातीय लक्षण बता रही हैं कि कुड़मी जाति नहीं जनजाति है, लेकिन सरकार इन सब के बावजूद भी कुड़मी को जनजाति की सूची में शामिल नहीं कर रही है। इसके लिए और संघर्ष करने की जरूरत है। कार्यक्रम में मानू गुलिआर, अनंत कड़हआर, मुरली पुनुरिआर, उमाचरण गुलिआर, टुपकेश्वर केसरिआर, जलेश्वर हिंदइआर, प्रवीण केसरिआर, सहदेव टिडुआर, पीयूष बंसरिआर, महावीर गुलिआर, ज्ञानी गुलिआर, भागीरथ बंसरिआर, मुरली जालबानुआर, सुभाष हिन्दइआर, सुलचंद गुलिआर, मिथिलेश केटिआर, उमेश केसरिआर, अखिलेश केसरिआर, अमरनाथ गुलिआर, सदानंद गुलिआर सहित अन्य शामिल थे।

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